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- अष्टाङ्गहृदयेस्वरभेद-मंदाग्नि-उदावर्त-पीनस-इन आदि रोगोंको शांत करतीहै और बडीमूली रसमें और पाकमें कटु है और उष्णवीर्य्यवाली है और त्रिदोषको करती है ॥ १०२ ॥
गुर्वभिष्यन्दि च स्निग्धस्विन्नं तदपि वातजित् ॥
वातश्लेष्महरं शुष्कं सर्वमामं तु दोषलम् ॥ १०३ ॥ भारी है कफको करती है और स्निग्धकरके स्वेदित करी मूली वातको जीतती है सूखी मूली बातको और कफको हरती है, और कची मूली दोषोंको उपजाती है ।। १०३ ॥
कट्टष्णो वातकफहा पिण्डालुः पित्तवर्धनः॥
कुठेरशिग्रुसुरससुमुखासुरिभूस्तृणम् ॥ १०४॥ पिंडालशाक कटु है गरम है वात कफको करता है और पित्तको बढाता है और वैकुंठशाक-- .सहोजना-कृष्णतुलसी-कटुपत्रकी-राई-शुद्धबीजा ॥ १०४॥
फणिज्जार्जकजम्बीरप्रभृति ग्राहि शालनम् ॥
विदाहि कटु रूक्षोष्णं हृद्यं दीपनरोचनम् ॥ १०५॥ • मिरच--खरपत्री--जंबीरी नींबू--आदि गण स्तंभनहै, और विदाहीहै कटु है रूखा है गरम है, सुंदर दै दीपन और रोचनहै ॥ १०५ ॥
दृकुशुक्रकृमिहत्तीक्ष्णं दोषोत्क्लेशकरं लघु ॥ हिमकासश्रमश्वासपार्श्वरुक्पूतगन्धिहा ॥ १०६ ॥ और दृष्टि--कृमि इन्होंको नारी है, तीक्ष्ण है दोप और उत्क्लेशको करै है, हलका है और इन्होंमें काली तुलसी हिचकी--खांसी--श्रम-श्वास-पसलीशूल-दुर्गध इन्होंको नाशती है॥१०॥
सुरसः सुमुखो नातिविदाही गरशोफहा॥
आर्द्रिका तिक्तमधुरा मूत्रला न च पित्तकृत् ॥ १०७॥ और कटुपत्रीशाक अतिदाहको नहीं करै है, विष और शोजाको नाशै है, आदिका अर्थात कोथिवीर शाक तिक्त है मधुर है मूत्रको लाता है और पित्तको नहीं करता है ॥ १०७ ॥
लशुनो भृशतीक्ष्णोष्णः कटुपाकरसः सरः॥
हृद्यः केश्यो गुरुर्वृष्यः स्निग्धो रोचनदीपनः॥ १०८॥ लशुन अति तीक्ष्ण है अति गरम है पाकमें और रसमें कटु है सर है सुंदर है वालोंमें हित है भारी है वीर्यको उपजाता है और चिकना है रोचन और दीपन है ॥ १०८ ॥
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