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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२) अष्टाङ्गहृदयेशशाहारिणी-गांधविशेष-करढोक पक्षी-गधि-उलूक-काला-चिडा धूम्याट पक्षी-मधुहाजीव-ये पशु और पक्षी प्रसह कहातेहैं ॥ ४८ ॥ वराहमहिषन्यकुरुरुरोहितवारणाः॥ सृमरश्चमरः खगो गवयश्च महामृगाः॥४९॥ शूकर-भैंसा-सावर–रुरुमृग-रोहितमृग-हाथी-महाशूकर-चमरमृग-ौंडा-रोल ये महामृग कहातेहैं ॥ ४९ ॥ हंससारसकादम्बवककारण्डवप्लवाः॥ वलाकोत्क्रोशचक्राह्वमद्गुक्रौञ्चादयोऽप्चराः॥५०॥ हंस-सारस-कलहंस-बगला-काकसरीखा पक्षी-क्रौंचपक्षी विशेष-मुरगाई-पेंचापक्षाचकवा पक्षी-मालुधान-सर्प-कुंज-आदि पक्षी जलचारी कहातहैं ॥ ५० ॥ मत्स्या रोहितपाठीनकुमकुम्मीरकर्कटाः॥ शुक्तिशंखोड्रशम्बूकशफरीवर्मिचन्द्रिकाः ॥ ५१ ॥ रोहित-पाठीन-कछुवा-चुंभीर-ककेरा-शुक्ति-शंख-उडू-शंबूक-शफरी-बर्मि चंद्रिका ५१ चुलकीनक्रमकरशिशुमारतिमिगिलाः ॥ राजीचिलिचिमाद्याश्च मांसमित्याहुरष्टधा ॥ ५२ ॥ चुलकी-मच्छ-मकरमच्छ-शिशुमार-तिमिगिल-राजी-चिलचिम-ये सब मत्स्यसंज्ञक कहातेहैं ऐसे आठ प्रकारों करके मांसको वैद्योंने कहाहै ॥ ५२ ॥ योनिष्वजावी व्यामिश्रगोचरत्वादनिश्चिते ॥ आद्यान्त्या जांगलानूपा मध्यौ साधारणौ स्मृतौ ॥ ५३॥ पूर्वोक्त इन आठ योनियोंमें मिश्ररूप देशमें विषयवाली होनेसे वकरी और भेड अनिश्चितहै, अर्थात् जांगल देशमेंभी होती है, और अनूपदेशमेंभी होतीहै, और आदिमें होनेवाले अर्थात् मृग विस्किर-प्रतुद-ये जांगलहैं, और अंतमें होनेवाले अर्थात् शूकर जलचारी मच्छ आदि ये सब अनूप हैं, और मध्य अर्थात् बिलेशय और प्रसहसंज्ञक जीव साधारण अर्थात् जांगल और अनूप देशमें विचरनेवाले हैं ॥ ५३ ॥ तन बद्धमलाः शीता लघवो जांगला हिताः॥ पिसोत्तरे वातमध्ये सन्निपाते कफानुगे॥ ५४॥ तीन प्रकारके देशोंमें बसनेवाले जीवोंमें जांगल जीव मलको बांधतेहैं, शीतल हैं, हलके हैं और पित्तकी अधिकतावाले और बातकी मध्यतावाले और कफकी हीनतावाले सन्निपातमें हित हैं५४। दीपनः कटुकः पाके ग्राही रूक्षो हिमः शशः ॥ ईषदुष्णा गुरुः स्निग्धा बृंहणा वर्तकादयः॥ ५५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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