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अष्टाङ्गहृदये
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लाजास्तृट्छद्येतीसारमेहमेदः कफच्छिदः ॥ कासपित्तोपशमना दीपना लघवो हिमाः ॥ ३५ ॥
लाजा अर्थात् धानकी खील तृषा - छर्दि - अतिसार - प्रमेह - मेद - कफ - इन्होंको नाशती है, खांसी पित्तको शांत करती है और दीपन है हलकी हैं शति है || ३५ ॥
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पृथुका गुरवो बल्याः कफविष्टम्भकारिणः धाना विष्टम्भिनी रूक्षा तर्पणी लेखनी गुरुः ॥ ३६ ॥
पृथुक अर्थात् तुपसे रहित और भ्रष्ट और मुसलसे हत ऐसा अन्न कफ और विष्टंभको करता है भारी हैं बल में हित है, धाना अर्थात् भुने हुये जब आदिकी वाणी विष्टंभ करती है रूखी है तृप्त करती है लेखनी है भारी है ॥ ३६ ॥
सक्तवो लघवः क्षुत्तृट्मनेत्रामयत्रणान् ॥
घ्नन्ति सन्तर्पणाः पानात् सद्य एव बलप्रदाः ॥ ३७ ॥ सत्तू हलके हैं और भूख - तृषा-श्रम -श्रम-नेत्ररोग- - व्रण - इन्होंको नाराते हैं और तृप्ति करते हैं और पान करनेसे तत्काल बलको देते हैं ॥ ३७॥
नोदकान्तरिता न द्विर्न निशायां न केवलान् ॥
न भुक्त्वा न द्विजैश्छित्त्वा सक्तूनद्यान्न वा बहून् ॥ ३८॥ .तिन सत्तुओंके मध्यमें पानी पीकर फिर सत्तूका पान नहीं करें, और दो बार सत्तूका पान नहीं करे और रात्रि में सत्तूका पान नहीं करे और अकेले सत्तूका पान नहीं करै, और भोजनको खाके पीछे सचुका पान नहीं करै और दंतोंसे छेदित करके सत्तूका पान नहीं करें और बहुत से सत्तुओं को खावै नहीं ॥ ३८ ॥
पिण्याको ग्लपनो रूक्षो विष्टम्भी दृष्टिदूषणः ॥ ferral asोपचयवर्द्धनः ॥ ३९ ॥
deart गुरुः
पिण्याक अर्थात् तिल आदिको पीडितकरके बचा हुआ कल्क ग्लानिको करता है रुखा है विष्टं - भी है दृष्टिको दूषित करता है; बेसवार अर्थात् सूंठ - धनियां - जीरा - हींग - घृत- इन आदि करके पकाया मांस भारी है चिकनाहे और शरीरको और बलको बढाता है || ३९ ॥
मुहादिजास्तु गुरवो यथाद्रव्यगुणानुगाः ॥ कुकूलकपर भ्राष्ट्र कन्द्रङ्गारविपाचितान् ॥ ४० ॥
मूंग आदिके बेसबार भारेहैं और द्रव्य के अनुसार गुणों को देते हैं. कुकूल अर्थात् गायका गोबर के गोसोंका चूर्ण कर्पर अर्थात् अग्निकरके तप्त कपाल - भ्राष्ट - कंडु - अंगार - इन्होंपै पकाये हुये अपूप अर्थात् मालपुर ॥ ४० ॥
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