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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(५७) • तिन्होंमें मूंग हितहैं यह अल्पवातको करताहै मटर अतिशयः करके वातको करताहै, चौला वातको करताहै, रूखाहै बहुतसे विष्ठाको उपजाताहै और भारी है ॥ १७ ॥
उष्णाः कुलत्थाः पाकेऽम्लाः शुक्राश्मश्वासपीनसान् ॥
कासार्श:कफवातांश्च घ्नन्ति पित्तास्रदाः परम् ॥ १८॥ कुलथी; गरमहै पाकमें खट्टी है, और वीर्य-पथरी-श्वास-पीनसको हरती है और खांसी-बवासीर-कफ-वातको नाशतीहै, और विशेषतासे रक्तपित्तको देती है ॥ १८ ॥
निष्पावो वातपित्तात्रस्तन्यमूत्रकरो गुरुः॥
सरो विदाहो दृक्शुक्रकफशोफविषापहः ॥ १९ ॥ मोठ; वात-रक्तपित्त-दूध-को करतीहै, भारीहै, सरहै, विदाही है. और दृष्टि-वीर्य-कफशोजा विषको नाशतीहै ॥ १९ ॥
माषः स्निग्धो बलश्लेष्ममलपित्तकरः सरः॥ गुरूष्णोऽनिलहा स्वादुः शुक्रवृद्धिविरेककृत् ॥२०॥
उडद चिकना है, और बल-कफ-मल-पित्तको करता है, सर है भारी है गरम है वातको नाशता है, स्वादु है वीर्यकी वृद्धि और विरेकको करताहे ॥ २० ॥
फलानि माषवद्विद्यात्काकाण्डोलात्मगुप्तयोः॥
उष्णस्त्वच्यो हिमः स्पर्श केश्यो बल्यस्तिलो गुरुः ॥२१॥ कटभी और कौंचके बीजभी उडदके समान फलवाले जानने; तिल गरमहै रुचिमें हित है स्पर्शमें शीतल है वालोंको बढाता है बलको करताहै और भारी है ।। २१ ॥
अल्पमूत्रः कटुः पाके मेधाग्निकफपित्तकृत्॥
स्निग्धोमा स्वादुस्तिक्तोष्णा कफपित्तकरी गुरुः ॥ २२ ॥ मूत्रकी अल्पताको करताहै, पाकमें कटुहै, बुद्धि-अग्नि-कफ-पित्तको करताहै। अलसी;चिकनी है, स्वादु है, तिक्तहै, गरमहै, कफ और पित्तको करतीहै भारीहै ।। २२ ॥
'हशुक्रहृत् कटुः पाके तद्वदीजं कुसुम्भजम् ॥
माषोऽत्र सर्वेष्ववरो यवकः शूकजेषु च ॥ २३॥ दृष्टि और वीर्यको हरती है, पाकमें कटु है, और कुसुंभके बीजमेंभी येही गुण है; इन शिंबी अन्नोंमें उडद श्रेष्ट नहीं है, और शूक अन्नोंमें जव श्रेष्ट नहीं है ॥ २३ ॥
नवं धान्यमभिष्यन्दि लघु संवत्सरोषितम् ॥ शीघ्रजन्म तथा सूप्यं निस्तुषं युक्तिभर्जितम् ॥ २४ ॥
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