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(१०४८)
अष्टाङ्गहृदयम् । वात पित्त कफकी शांतिमें क्रमसे तेल घृत शहद ये पथ्य हैं ऐसे ब्रह्माजी कहतेहैं, और ऐसेही सनत्कुमारआदिभी कहतेहैं, और नहीं शब्द स्वभाववाले तेलआदिमें वातादि शमनशक्तिसे वक्ताकी विशेष उक्ति करके कोई शक्ति नहींहै ॥ ८५ ॥
अभिधातृवशाकिंवा द्रव्यशक्तिर्विशिष्यते ॥
अतो मत्सरमुत्सृज्य माध्यस्थमवलंब्यताम् ॥ ८६ ॥ . . अभिधान करनेवालेके वशसे क्या द्रव्यकी शक्ति विशिष्ट होतीहै, अर्थात् नहीं होती. इसकारणसे मत्सरपनेंको त्यागकर माध्यस्थ बल अर्थात् यह शास्त्र उपकारक है या अन्य ऐसे विचार कर तिसके आश्रित होना उचितहै ।। ८६॥ __ ऋषिप्रणीते प्रीतिश्चेन्मुक्त्वा चरकसुश्रुतौ ॥
भेडाद्याः किं न पठयन्ते तस्माद्ग्राह्यं सुभाषितम् ॥ ८७ ॥ चरक और सुश्रुतको छोडकर ऋषिप्रणीत ग्रंथों में प्रीति उपजै तो भेड संहिता आदिका अध्ययन क्यों नहीं करते, तिन्होंसे सुभाषित ग्रहण करना योग्यहै ॥ ८७ ॥
हृदयमिव हृदयमेतत्सर्वायुर्वेदवाङ्मयपयोधेः॥
दृष्ट्वा यच्छुभमाप्तं शुभमस्तु परं ततो जगतः॥८८॥ संपूर्ण आयुर्वेदकी वाणीरूप समुद्रके हृदयकी समान वह हृदय है इस हृदयको देखकर जो परम और श्रेष्ठ कल्याण प्राप्त हुआहै तिस शुभसे जगत्को मंगलहो ॥ ८ ॥ इति वेरीनिवासि पंडित शिवसहायसूनु वैद्यपंडितरविदत्तशास्त्यनुवादिताऽष्टांगहृदयसंहिताभा
पाटीकायामुत्तरस्थाने चत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४० ॥ इति श्रीमुरादाबादनिवासिमिश्रसुखानंदसूनुपंडितज्वालाप्रसादमिश्रसंशोधिताष्टांगहृदयसंहिता
भाषाटीकायामुत्तरस्थाने चत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४० ॥ प्रसिद्धराजवैद्येन मुरलीधरशर्मणापि संशोधितोयं ग्रंथःसमाप्तिमगमत् । यहां वैद्यपति श्रीसिंहगुप्तके पुत्र वाग्भट्टविरचितअष्टांगहृदय
संहितामें उत्तरस्थान समाप्तहुआ।
इति अष्टांगहृदय संपूर्ण ॥ इति वैद्यरविदत्तअनुवादित वाग्भट्टविरचित अष्टांगहृदयसंहितासमाप्तहुई ॥ - युगाब्धिनवभूम्यब्दे बदरीपुरवासिना ॥ ..
- रविदत्तेन वैद्येन रचिता माघमासके ॥१॥ खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेङ्कटेश्वर” स्टीम्,प्रस-बंबई.
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