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(१०२८)
अष्टाङ्गहृदयेदाहको दूर करनेके अर्थ अत्यंत शीतल अनुलेपवाला होके मोतियोंकी माला और कपुरकी माला और जलके किणकेको धारै ।। २२ ॥
कुडवोऽस्य परा मात्रा तदद्ध केवलस्य तु ॥
पलं पिष्टस्य तन्मज्ञः सभक्तं प्राक्च शीलयेत्॥२३॥ • मदिरासे सहितहुये इसकी १६ तोले परममात्राहै, और केवल रसकी ८ तोले मात्राहै, और पिसीहुई तिसकी मज्जाकी ४ तोले मात्राहै और भोजनसे पहिले इसका अभ्यासकरै ।। २३ ॥
जीर्णशाल्योदनं जीणे शंखकुन्देंदुपांडुरम् ॥
भुंजीत यूषैः पयसा रसैर्वा धन्वचारिणाम् ॥ २४ ॥ शंख कुंद चंद्रमाके समान श्वेत और पुराने शाली चावलको यूपोंके संग अथवा दूधके संग अथवा जांगलदेशके मांसके संग खावै ॥ २४ ॥
मद्यमेकं पिबेत्तत्र तत्प्रबंधे जलान्वितम् ॥
अमद्यपस्त्वारनालं फलाबुपरिसिद्धिकाम् ॥ २५॥ उपजीहुई तृषामें पानीसे संयुक्तकिये अकेली मदिराको नहीं पावै और मदिराको पीनेवाला कांजीको तथा खट्टे रसकी परिसिक्थिकाको पावै ॥२५॥
तत्कल्कं वा समघृतं घृतपाने खजाहतम् ॥
स्थितं दशाहादशीयात्तद्वद्वा वसया समम् ॥२६॥ अथवा लस्सनके कल्कमें बराबरका घृत मिला और घृतके पात्रमें मंथसे मथितकर पीछे दश दिनोंतक स्थितरहको खावै अथवा बजाके साथ दशदिनके उपरांत खावै ।। २६ ।।
विकंचुकप्राज्यरसोनगर्भान्सशूल्यमांसान्विविधीपदंशान् । विमर्दकान्वा घृतशुक्तयुक्तान्प्रकाममद्याल्लघुतुत्थमनन् ॥ २७॥
स्वचासे वर्जित और प्रभूत लस्सन शूलपर भुनेहुए और वह शूल्य मांससे संयुक्त अनेक प्रकारके रोचक पदार्थोंको अथवा घृत और कांजीसे युक्तहुये विमर्दको इच्छाके अनुसार खावै ॥ २७ ॥
पित्तरक्तविनिर्मुक्तसमस्तावरणावृते ॥
शुद्धे वा विद्यते वायौ न द्रव्यं लशुनात्परम् ॥२८॥ पित्त और रक्तसे वर्जित,सकल आवरणसे आवृत अथवा शुद्ध वायुमें ल्हस्सनसे परे द्रव्य नहींहै२८
प्रियांबुगुडदुग्धस्य मांसमद्याम्लविद्विषः ॥
अतितिक्षोरजीणं च रसोनोव्यापयेद्धृवम् ॥२९॥ पानी गुड दूध जिसको प्यारेहैं ऐसे मनुष्यको. ल्हस्सन प्याराहै, और मांस मदिरा खटाईके वैरी अणि को नहीं सहनेवाले मनुष्यको निश्चय ल्हस्सन दुःखके अर्थ होताहै ॥ २९ ॥
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