________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९९३) तगर ८ तोले कूठ ८ तोले घृत १६ तोले शहद १६ तोले तक्षकसे दष्टहुये मनुष्योंकोभी यह पान सुखको देनेवालाहै ॥ ७३ ॥
अथ दर्वीकृतां वेगे पूर्वे विस्राव्य शोणितम्॥
अगदं मधुसर्पिा संयुक्तं त्वरितं पिबेत् ॥७४ ॥ दर्वीकर सपोंके प्रथम वेगमें रक्तको निकास पीछे शहद और घृतसे संयुक्तकिया औषध शीघ्र पीना ॥ ७४ ॥
द्वितीये वमनं कृत्वा तद्वदेवागदं पिबेत् ॥ दूसरे घेगमें वमनकरके पीछे तैसेही औषधको पीवै ।।
विषापहैः प्रयुञ्जीत तृतीयेऽञ्जननावने ॥७५॥ और तीसरेवेगमें विषको नाशनेवाले औषधोंसे अंजन और नस्यको प्रयुक्तकरै ।। ७५ ॥
पिबेचतुर्थे पूर्वोक्तां यवागू वमने कृते ॥ चौथे वेगमें वमनकरके पूर्वोक्त यवागूको पावै ॥
षष्ठपञ्चमयोः शीतैर्दिग्धं सिक्तमभीक्ष्णशः॥ ७६ ॥
पाययेद्वमनं तीक्ष्णं यवागू च विषापहैः ॥ छठे और पांचवे वेगमें शीतल औषधोंसे वारंवार लेपित और सेचित किये मनुष्यको ॥ ७६॥ तीक्ष्ण वमन अथवा विषको नाशनेवाले औषधोंसे बना यवागू पान करावै ॥
अगदं सप्तमे तीक्ष्णं युज्यादञ्जननस्ययोः॥ ७७॥ कृत्वावगाढं शस्त्रेण मूर्ध्नि काकपदं गतः॥
मांसं सरुधिरं तस्य चर्म वा तत्र निक्षिपेत् ॥ ७८ ॥ भौर सातमें वेगमें अन्न और नस्यके द्वारा तीक्ष्ण औषधको प्रयुक्तकरै ।। ७७ ।। शिरमें शस्त्र करके काकपद नामक अवगाढको करके रक्तसहित मांस अथवा चर्मको तहां स्थापितकरै ॥ ७८ ।।
तृतीये वमितः पेयां वेगे मण्डलिनां पिबेत् ॥ मंडलवाले सर्पके तीसरे वेगमें वमन करके पीवै ॥
अतीक्ष्णमगदं षष्ठे गणं वा पद्मकादिकम् ॥७९॥ और छठे वेगमें कोमलरूप औषध अथवा पद्मकादिगणके औषधको प्रयुक्तकरै ।।
आद्येऽवगाढं प्रच्छाय वेगे दष्टस्य राजिलैः॥ __ अलाम्बुना हरेद्रक्तं पूर्ववच्चागदं पिबेत् ॥ ८॥
राजिलसोंके प्रथम वेगमें दष्टको प्रच्छादितकर पीछे लूंबीकरके रक्तको निकासे और पहिलेकी तरह औषधको पावै ।। ८०॥
For Private and Personal Use Only