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(९७४)
अष्टाङ्गहृदयेएवं योनिषु शुद्धासु गर्भ विन्दान्त योषितः॥६१॥अदुष्टे प्राकृते बीजे जीवोपक्रमणे सति॥पञ्चकर्मविशुद्धस्य पुरुषस्यापि चेन्द्रियम् ॥ ६२॥ परीक्ष्य वर्णेोणाना दुष्टं तद्नैरुपाचरेत् ॥ मञ्जिष्ठाकुष्ठतगरत्रिफलाशर्करावचाः॥६॥द्वे निशे मधुकं मेदा दीप्यक कटुरोहिणी ॥ पयस्याहिङ्गकाकोलीवाजिगन्धाशतावरीः॥६॥ पिष्ट्राक्षांशैघृतप्रस्थं पचेत्क्षीराच्चतुर्गुणम् ॥ योनि शुक्रप्रदोषेषु तत्सर्वेषु च शस्यते ॥६५॥ आयुष्यं पौष्टिकं मध्यं धन्यं पुंसवनंपरम् ॥ फलसपिरिति ख्यातं पुष्पे पीतं फलाय यत् ॥६६॥ म्रियमाणप्रजानां च गर्भिणीना च पूजितम् ॥ एतत्परञ्च बालानां ग्रहन्नं देहवर्द्धनम् ॥ ६७॥ ऐसे शुद्धहुई योनियों में स्त्री गर्भको प्राप्तहोतीहै ॥ ६१ ॥ प्राकृत बीजके अदुष्टपनमें और जीवके उपक्रमणमें पंचकर्मसे विशुद्धहुये पुरुषके वीर्यको ।। ६२ ॥ दोषोंके वर्षोंसे दुष्टहुयेकी परीक्षा कर पीछे तिन दोषोंके नाशनेवाले औषधोंसे उपाचरित करे और मजीठ कूठ तगर त्रिफला खांड वच ॥ १३ ॥ हलदी दारुहलदी मुलहटी मेदा अजमोद कुटकी दूधी हींग काकोली असगंध शतावरी ॥ ६४ ॥ ये सब एक एक तोला भर ले पीस कल्क बनावै और २५६ तोले दूध मिला तिन्होंमें ६४ तोले घृतको पकावै यह योनि और वीर्यके सब दोषोंमें श्रेष्ठ है ॥ ६५ ॥ आयुको बढाताहै पुष्टिको करताहै और बुद्धिमें हितहै, और धन्यहै अतिशय करके पुंसवन है और फलसार्पनामसे विख्यातहै यह घत आर्तव समयमें पानकिया संततिको उपजातहि ॥ ६६ ॥ _ और जिसकी संतान मरजातीहो ऐसी स्त्रियोंको और गर्भवाली स्त्रियोंको पूजितहै और बालकोंके ग्रहोंको नाशताहै और देहको बढाताहै ॥ ६७ ॥ । इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया
मुत्तरस्थाने चतुस्त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३४ ॥
पञ्चत्रिंशोऽध्यायः । अथातो विषप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर विषप्रतिषेध नामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । मथ्यमाने जलनिधावमृतार्थं सुरासुरैः॥जातः प्रागमृतोत्पत्तेः पुरुषो घोरदर्शनः॥१॥दीप्ततेजाश्चतुर्दष्ट्रोहरिकेशोऽनलेक्षणः॥ जगद्विषण्णं तंदृष्ट्वा तेनासौ विषसंज्ञितः॥२॥हुङ्क्तो ब्रह्म
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