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(९७२)
अष्टाङ्गहृदयेरक्तयोन्यामसृग्वर्णैरनुबन्धमवेक्ष्य च ॥४४॥
यथादोषोदयं युज्याद्रक्तस्थापनमौषधम् ॥ और रक्तयोनिमें वर्णोसे रक्तको और अनुबंधको देखकर ॥ ४ ४ ॥ दोषके उदयके अनुसार रक्तको स्थापन करनेवाले औषधको प्रयुक्तकरै ॥
पाठा जम्ब्वाम्रयोरस्थिशिलोद्भेदंरसाञ्जनम्॥४५॥अम्बष्ठाशाल्मलीपिच्छा समङ्गांवत्सकत्वचम्॥वाहीकबिल्वातिविषारोध्रतोयदगैरिकम्॥४६॥शुण्ठीमधूकमाचीकरक्तचन्दनकट्फलम्॥ कङ्गवत्सकानन्ताधातकीमधुकार्जनम् ॥४७॥ पुष्ये गृहीत्वा सञ्चूर्ण्य सक्षौद्रं तन्दुलाम्भसा। पिबेदर्शःस्वतीसारे रक्तं यश्चोपवेश्यते॥४८॥ दोषा जन्तुकृताये च बालानांतांश्च नाशयेत्॥ योनिदोषं रजोदोषं श्यावश्वेतारुणासितम् ॥४९॥चूर्णं पुष्पानुगं नाम हितमात्रेयपूजितम् ॥
और पाठा जामन और आमकी गुठली शिलाजीत रसोत ॥ ४५ ॥ चूका संभल मोचरस - मजीठ कूडाकी छाल केशर बेलगिरी अतीश लोध नागरमोथा गेरू ॥ ४६ ॥ सूट महुआ मोय्या लालचंदन कायफल सोनापाठा कूडा धमासा धायके फूल मुलहटी कौहवृक्ष ॥ ४७ ॥ इन्होंको पुष्यनक्षत्रमें ग्रहणकर और चूर्णबना और शहदसे संयुक्तकर चावलोंके पानीके संग पावै बवासीरमें अतीसारमें दस्तौंद्वारा रुधिर निकलताहो तिसको यह हितहै ॥ ४८ ॥ बालकोंके कीडों से उपजे जो दोषहैं तिन्होंको और योनिदोषको और धूम्रवर्ण श्वेत और लाल और कृष्ण आर्तबदोषको नाशताहै ।। ४९ ॥ यह पुष्पानुग चूरण हितहै और आत्रेयमुनिपे पूजितहै ॥
योन्यां बलासदुष्टाया सर्वं रूक्षोष्णमौषधम् ॥ ५॥ और कफसे दूषितहुई योनिमें रूक्ष और गरम सब औषध हितहै ॥ ५० ॥
धातक्यामलकीपत्रस्रोतोजमधुकोत्पलैः॥ जम्ब्बाम्रसारकासीसरोधकट्रफलतिन्दुकैः ॥५१॥ सौराष्ट्रिकादाडिमत्वगुदुम्बरशलाटुभिः ॥ अक्षमानैरजासूत्रे क्षीरे च द्विगुणे पचेत् ॥ ५२ ॥ तैलप्रस्थं तदभ्यङ्गपिचुवास्तषु योजयेत् ॥ शूनोत्तानोन्नता स्तब्धा पिच्छिला स्राविणी तथा ॥ ५३॥
विप्लुतोपप्लुता योनिः सिद्धयेत्सस्फोटशूलिनी ॥ धायके फूल आँवलाके पत्ते वेंत मुलहटी कमल जामनका और आंबका सार कसीस लोध कायफल तेंदु ॥ ५१॥ मुलतानीमट्टी अनारकी छाल गूलरके कचे फल ये सब एक एक तोले
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