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| पूर्वक श्री गौतम नामर्नु पूजन कर्यु हतुं. ते पूजनमा आवेला द्रव्यमांथी त्यां ज्ञान खाते वपरात। बाकी रहेली रकम कोइ पण प्राचीन ग्रंथ छपाववा माटे जावाल श्री संघे अत्रे मोकली हती. ते रकम जोके आ ग्रन्थ छपाववामां जे खर्च थयो छे ते अपेक्षाए पूरती नथी तो पण प्राथमिक तेओनी मदद होवाथी फरीथी पण अमो जावाल श्री संघनो हार्दिक उपकार मानीए छीए. उपाध्यायजी महाराजनी एकली टीकाज मात्र आ ग्रन्थ छपाववाथी मूल ग्रन्थ सिवाय वाचनारने जोइए तेटलो उपकारक नहि थाय तेम विचारी सर्वांग ( श्री समन्तभद्राचार्य विरचित आप्तमीमांसा मूल-श्रीमदकलंकदेव प्रणीत भाष्य संवलित श्रीमद्विद्यानं दिसूरि | विरचित वृत्ति ) समेत आ ग्रन्थ भावनगरना महोदय प्रिन्टींग प्रेसमां निर्णय सागरीय टाइपो अने सारा टकाउ डोइंग पेपरोमां छपाव्यो छे. आ ग्रन्थनुं प्रमाण लगभग ७० फारम अने १८००० श्लोक संख्या थशे.
आ स्थळे अमारे जणावयूँ जोइए के स्याद्वादना गहन विषयनो तर्क प्रधान नवीन न्यायश्रेणियी एक समर्थ विद्वानना हाथथी लखाएल ग्रन्थनुं शोधन करवानुं कार्य छपाती वखते बीजी सामी प्रत अथवा भांडारकर इन्स्टयुटनी ते मूल प्रति सिवाय अमने दुर्घट लाग्युं पण अमारे सखेद जणावयूँ जोइए के ते बन्नेमांथी एक पण मेळववा प्रयत्नना साफल्य माटे अमो भाग्यशाली बन्या नथी छतां पण घणा विद्वानोनी प्रेरणाथी जे मल्युं छे ते उपरथी पण छपाववा निर्णय कर्यो. अमोने घणा विद्वानो तरफथी कहेवामां आव्युं तेमज अमारं पण चोकस मानवू थयु के आवी रीते आ एकज कोपी उपरथी बनी शके तेटलुं सुधारवानुं कार्य करवाने लायक शासनसम्राट सूरिचक्रचक्रवर्ति अनेकतीर्थोद्धारक सर्वतंत्र स्वतंत्र जगद्गुरु तपागच्छाधिपति भट्टारक आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजयनेमि सूरीश्वरजीना पट्टधर सिद्धान्त वाचस्पति न्यायविशारद प्रसिद्ध विद्वान आचार्य महाराज श्रीविजयोदयसूरिजी महाराज करी शकशे.
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