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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir په श्री अष्ट प्रकार . هالحلها बडा आश्चर्य हा और बोला, हे ज्ञानी! यह बात कैसे हुई? कृपाकर सब कहो । जब रतिसुन्दरी ने तुम्हारे इस पुत्र को देवी के अर्पण करना चाहा तय विद्याधर इसको हरण कर ले गया। वही यौवनावस्था पाकर इधर आया। और अपनी माता का उसने हरण किया। राजा ने फिर निवेदन किया हे मुनिराज! इस दुष्ट पुत्र ने मेरे वंशमें कलङ्क लगाया और विरुद्ध कार्य किया । तब मुनीद्र बोले, हे यशस्विन् ! सन्देह मत कर, इसने विरुद्ध कार्य । नहीं किया है। तब राजा हाथ जोड़ कर फिर बोला, हे ज्ञानसागर ! इसका संबन्ध परा कहिए, इसके सुनने का मुझे बहुत कौतुक है। तब केवली गुरु कहने लगे-हे राजन् ! जब तुम्हारी रतिसुन्दरी रानी ने पांच दिन का राज्य तुमसे । मांगा था और इस पुत्र को देष वश अपने पुत्र की रक्षा के निमित्त मारना चाहा था, कुलदेवी की महोत्सव से । पूजा करी थी। उसी समय वैताग्य पर्वत से विद्यावर राजा इस उद्यान में आया था। पुत्र को गुणवान् , सुन्दर देख स्नेह उत्पन्न हुआ, तव हरण करके अपनी स्त्री विद्याधरी को सौंपा, उसने पालन कर बड़ा किया । जब यह । तरुण हुआ तो विमान लेकर आया और अपनी माता को विलाप करती देखी तब स्नेह उपजा और हरण कर अपने नगर में लेगया। जव यह उद्यान में दोनों वैठे तब एक बानरी ने इसको बोध दिया, तब इस कुमारने अपनी असली बात विद्याधरी अपनी माता से पूछी। अब परिवार सहित सन्देह दूर करने को यहां आया है। In ३२॥ For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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