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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir जानकारित अनन्तर कुमार ने फिर माता से पूछा, मैं विशेष कारण जानना चाहता हूँ। तब माता ने वही यात कही। फिर कुमार ने अत्यन्त आग्रह से पूछा, सत्य कहो मेरी जननी और जनक कौन है? तब माता ने कुछ संदेह पूर्वक कहा तय तो कुमार के मन में विशेष संदेह उत्पन्न हुआ। कुमार ने पिताजी को बुला कर पूछा, तब उन्होंने भी यही कहा कि हम ही तुम्हारे माता पिता हैं, इसमें सन्देह मत करो। तब कुमार बोला-हे पिता जी! सुनो मैंने एक नारी स्त्री की बुद्धि से हरण की है, उसकी सब बात यानी पानरी के वचन, ज्ञानी मुनि का | पूछना इत्यादि सब बात कही और पिता जी से आज्ञा मांगी कि मैं हेमपुर नगर में जाऊंगा और इस बात का * निश्चय केवली से पूगा। ऐसे पुत्र के वचन सुन कर विद्याधर राजा ने आज्ञा दी । तब कुमार ने एक बड़े । विमान में विद्याधरी माता पिता और परिवार तथा जन्मदाता माता को बैठा कर हेमपुर की तरफ गमन किया। वहां उद्यान में केवलज्ञानी के पास जाकर बन्दना कर पृथ्वीतल पर बैठ गये । इसकी माता जयसुन्दरी भी हजारों स्त्रियों के बीच पुत्र साथ बैठी हुई धर्मदेशना सुनती है। इतने में हेमपुर का राजा भी अपने परिवार हैं और नगर के नरनारी सहित वहां आया और चन्दना कर सभा में बैठ गया; धर्म सुनने लगा । अन्त में अब-माँ * सर जान कर राजा ने गुरु के चरणकमलों में प्रणाम कर पूछा, हे भगवन् ! मेरी स्त्री जयसुन्दरी किसने हरी और कहां है ? तव केवली कहने लगे, तुम्हारे पुत्र ने जयसुन्दरी का हरण किया है, दूसरे ने नहीं। यह सुन राजा को لهللللهللهلا For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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