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________________ Shara lain Aradhana na Acharya Sh Kailassagaran Gyanmanda حل ليحل محلا होता है, एकाग्रचित्त से धूप दिये जाता है और अपने स्थान से चलित नहीं होता। यक्षने स्त्री जाति का हट* स्वाभाविक जान कर स्त्री को बहुत समझाया, परन्तु वह नहीं मानती है और अगाड़ी नहीं चलती है। तब वह यक्ष विनयंधर कुमार को स्थान से चलित करने को विषधर (सर्प) रूप बनाने लगा-और पास जाकर काला - भयंकरसप रूप से उस राजकुमार को चलित करने लगा। सब लोग सर्प देख कर वहां से दौड़ गये और विनयं धर कुमार से कहा तू भी धूप भाजन छोड़ कर चला जा नहीं तो यह भयंकर काला सांप खा जायेगा, परन्तु * राजकुमार अपना अभिग्रह छोड़ कर स्थान से चलित नहीं हुआ। तब वह यक्ष विचारने लगा कि सब लोग मेरे डर से दौड़ गये पर वह कुमार स्थान से चलित नहीं हुआ, अब मैं ऐसा उपद्रव करू जिस से यह यहां से उठ जाय। ऐसा विचार कर अपने शरीर को बढ़ाकर उस के शरीर को चारों तरफ से वेष्टित कर ( लपेट ) लिया। और बल से राजकुमार के शरीर की हड्डियों को तोड़ने । लगा । प्रत्येक अंगों में पीडा करता है। ऐसा भयंकर उपद्रव उसने किया तो भी वह यक्ष कुमार को स्थान से चलायमान नहीं कर सका । तब यक्ष प्रत्यक्ष हो इस का सच्चा परिणाम जान कर बोला-हे सत्यवादी पुरुष! तुम, 4 धन्य हो, मैं माप के इस अतुलसाहस से संतुष्ट हुआ हूँ. आप जो वस्तु चाहते हो कहो-वह अभी उत्पन्न करा . For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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