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Acharya Shit Ka
Gyanmandi
श्री अष्ट प्रकार से
व्याख्या-अब धूप की पूजा कहते हैं-कस्तूरी, चन्दन, अगर, कपूर, और अन्य सुगन्धित द्रव्यों से । बने हुए धूप से जो मनुष्य श्री जिनचन्द्र वीतराग को पूजता है, वह प्रधान देवेन्द्रों से अथवा अन्य राजादिकों से प्र पूजा जाता है॥१॥
मूलगाथा - जह विणयंधर कुमरो, जिणन्द वर धूब दाण भत्तीरा।
जाओ सुरनर पूजो सत्तम जम्मेण सिद्धिगओ ॥२॥ संस्कृतच्छाया - यथा विन धर कुमारः, जिनेन्द्रवर धूपदान भक्त्या ।
जातः सुरनर पूज्यः, सप्तम जन्मनि सिद्धिंगतः ॥२॥ व्याख्या-जैसे विनयंधर नामक कुमार श्री जिनराज के प्रधान धूप दान की भक्ति से देवता और मनुष्यों के पूजनीय हुआ और पूजा करने वाले भव से सातवें भव मुक्ति में पहुंचा।
अथ विनयंधर कथा प्रारभ्यते । इसी भरतक्षेत्र में पतनपुर नाम नगर है। वहां सूर्यवत् प्रतापी एक राजा राज्य करता था, उसका नाम बनसिंह था । उसकोसिंह की उपमा इसलिये दी गई है कि शत्रुरूपी गजेन्द्रों को मारने में सिंह समान था।
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