SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Seinakera Acharya Sh Kailassagarsen Gyanmandie --हे मुनिराज ! मुझ पापिनी ने आपके शरीर के मैल की घृणा की, उसकी क्षमा चाहती हूँ, इस तरह कहती हुई मुनि के चरणों में बार २ गिरी और क्षमा मांगी। तब वृषभ समान मुनीश्वर उसके वचन सुनकर बोले, हे भद्र तू मन में खेद मत धारण कर, मेरे 1 सामने ऐसी मालोचना (आलोयणा) लेने से सब कर्म निवृत्त हए परन्तु एक जन्म में इन कर्मों को अवश्य भोगना पड़ेगा। इस प्रकार मुनिराज के वचन सुनकर वे दोनों विद्याधर राजा रानी, केवलज्ञानी मुनि को प्रणाम कर - अपने नगर को आये। राजा ने रानी का इस प्रकार मनोरथ (गर्भिणी स्त्री का दोहला) पूर्ण हया समझा और दोनों सुख से रहने लगे। एक दिन अच्छे समय शुभवेला में और शुभयोग के साथ सुखमती रानी ने सुखकारी पुत्र को पैदा प्र किया जैसे पूर्व दिशा प्रकाशमान सूर्य को पैदा करती है। पांच धायों से पाला जाता हुश्रा वह कुमार योवन ॥ अवस्था को प्रास हुआ। अब राजा रानी ने उस पुत्र को राज्यभार दे, दीक्षा ली और प्रति दिन गुरु के चरण ليله لحلحلة For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy