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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री अष्ट प्रकार पूजा ॥ ४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। तब चार जाति के देवता संतुष्ट होकर केवल ज्ञान की महिमा करने को आये। निकाय वासी, भवनपति व्यंतर ज्योतिषिक और वैमानिक ये चार प्रकार के देवताओं ने इकट्ठ े होकर पुष्पों से सुगन्धित जल की वर्षा की। इस अवसर पर विद्याधर राजा जयशूर और रानी सुखमती भी पास आये और वन्दना, स्तुति कर सामने खड़े हो हाथ जोड़ कर इस प्रकार विनती करने लगे । हे मुनिराज ! जो हमने अज्ञान से आशातना अविनय किया है उसे आप क्षमा करें। यह बात सुन कर मुनीश्वर बोले हे राजन् ! मन में खेद मत करो, क्योंकि यहां किसी का बस नहीं चलता है। जिस जीव ने जैसे २ कर्म बांधे हैं वे उसी तरह निश्चय भोगे जाते हैं और शस्त्रों में यह भी कहा गया है कि जो मनुष्य साधु के शरीर के मैल और पसीनों की घृणा (जुगुप्सा ) करता है, वह पुरुष अनेक भवों में कर्म दोष के कारण घृषितपना पाता है। और भी शास्त्र में कहा है कि कई मनुष्य मैल से मैले हैं, कई रज से मैले हैं. कई धूलि से और कई भस्म से मैले हैं, परन्तु यह मैले नहीं हैं । जो पाप कर्म करते हैं उनको तीनों लोकों में सबसे बढ़कर मेला जानना चाहिये । ऐसे मुनिराज के वचन सुन वह सुखमती रानी बहुत भयभीत हुई कहने लगी कि - For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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