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अब कहाँ उत्पन्न हुई है ? उस पुण्य से कौनसी गति उसने पाई है ? अब आगामी भव में कौनसी गति पावेगी ? इसका अनुमान आप मुझको कह कर सुनाइये ।
तब मुनिराज बोले, उस सोमश्री का जीव इस समय अपने पिता के चरण कमल के पास बैठा है । इस समय मनोवांछित सुख भोगता है, यहां से फिर पूर्ण आयु भोग कर समाधि मरण प्राप्त हो देवताओं के सुख पावेगी, फिर मनुष्य भय के सुख पावेगी, फिर भोगावली कर्म भोग कर इस भव से पांचवे भव में केवल ज्ञान प्रति होकर अन्त में मुक्ति पद को प्राप्त होगी। यह सब श्री जिनराज की जलपूजा का महा प्रभाव है । इसी कारण इस भव में भी बड़े २ सुखों का उदय हुआ है ।
यह बात गुरू के मुख से सुनते ही कुंभश्री नामक राजपुत्री को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, और अपने पूर्व भव का सम्बन्ध जाना, उठकर गुरु के चरणों में प्रणाम करने लगी । चरण स्पर्श करके भक्ति से हाथ जोड़ कर बार २ बन्दना करने लगी और आचार्य के सामने खड़ी होकर अपने पूर्व भव की बात पूछने लगी 'हे भगवन् ! उस कुम्हार का जीव इस भव में कहां उत्पन्न हुआ है ? जिसने मुझको भक्ति से घड़े का दान दिया था वह गुणवान् मुझको अत्यन्त प्यारा है । वह कौन से उच्चकुल में किस आचार से रहता है । यह बात मुझको कृपा कर कहिये ।
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