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करीवर
श्यपुर के लिये प्रीति दान दो। यह सुन कर धड़े ग्रहण करके घर से निकली और जलपूर्ण तालाब से घड़ों को भर कर लाती थीं, मार्ग में एक जिन मन्दिर था वहां सोमश्री निकलती हुई ने साधुके मुखसे सुना कि जो जिन राज की भाव से जलपूजा करता है वह रमणीय सुख और परमपद ( मुक्तिस्थान) पाता है। जो प्राणी जल से भरा हुआ निर्मल घड़ा अथवा गागर (मटकी) से श्री जिनराज के अगाड़ी भक्ति से पूजा करे, वह निर्मल ज्ञान पावे अथवा उसकी आत्मा सद्गति को प्राप्त हो।
ऐसे साधु के वचन सुन कर सोमश्री को पूजा का भाव उत्पन्न हुआ, उसने अपना जलपूर्ण घड़ा श्री जिनवर के आगे चढ़ा दिया, और सामने खड़ी होकर विनती करने लगी। हे स्वामी ! मैं मूढ़ है, आपकी स्तुति ।
और भक्ति नहीं जानती हूँ परन्तु मापके आगे जलपूर्ण घड़े का पुण्य मुझे हो । इस प्रकार सामने खड़ी हुई विनती करती है।
यह सब बात देखकर साथ वाली अन्य स्त्रियों ने जाकर सासू से कहा, हे सोमे । तुम्हारी पुत्र पधू सोमश्री ने श्री वीतराग को जल घट का दान दिया है।
ऐसे वचन सुनते ही उस मोमा ब्राह्मणी ने क्रोध किया और अग्निवत् ज्वलित हुई बोली, जो घड़ा
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الليل الحليف
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