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उपाय कीजिये। यह सुन राजा बड़े चिन्ता समुद्र में गोता खाने लगा और विचार करने लगा कि यह बात कैसे श्री श्री प्रकार बने, यदि न हुई तो रानी अति चिन्तातुर होकर प्राण त्याग कर देवेगी, इसमें संदेह नहीं। इस प्रकार राजा पूजा । ॥ अत्यन्त दुःखित हो गया ।
इतने में देवलोक में अवधिज्ञान से दुर्गता देव ने जाना कि वह शुक का जीव रानी के गर्भ में उत्पन्न हुआ है। ऐसे पूर्व भव का स्नेह जान कर वह देव राजा के पास गया और पूर्व भव का उपकार जान कर सहा
यता करना चाहा । इसने विचार किया कि इसने पूर्व भव में मुझ को एक आम का फल पूजा के लिये दिया था 5.इसलिए इसकी माता का मनोरथ पूर्ण करना मेरा कर्तव्य है । ऐसा विचार उस नगरी में आकर एक सार्थवाह
का रूप बना कर एक पके हुए आम के फलों की छाब लेकर राजद्वार पर आया । राजा ने उसको भीतर बुलाया
उसने सभा में जाकर राजा को फलों की भेट को। राजा ने सुन्दर फल देखकर सार्थवाह से कहा, अहो सत्पुरुष! । आप कहां से आये हो, ये आम के फल अकाल में कहां से लाये? इस प्रकार राजा के पूछने पर सार्थवाह बोला,
हे राजेन्द्र ! इस रानी की कुक्षि में जो पुत्र उत्पन्न होगा उसके पुण्य प्रभाव से अकालिक फल मैने पाये हैं । ऐसा । - कह कर वहां से विदा हो गया।
ना॥५६॥
لجلبصلصمد
कवकजना
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