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Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
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लेकर श्री वीतराग के मन्दिर में गई और उसने भक्ति से फल समर्पण किया और भावना करती हुई एक तरफ बैठ गई, किंचित् काल ठहर कर अपने घर गई । इतने में वह शुक का जोड़ा भी अपनी २ चोंच से फल उठा कर वहां गया और अनुराग से श्री जिनेन्द्र के सामने रख दिया और विनती करने लगा हे प्रभो! मैं आपकी स्तुति नहीं जानता हूँ और विधि भी नहीं जानता परन्तु जो फल इसके समर्पण से होता है वह हमको भी प्राप्त हो, इस तरह कह कर अपने स्थान को चला गया।
वह दुर्गता स्त्री शुभ परिणाम से आयु का क्षय कर फल पूजा के प्रताप से देवलोक में उपत्न्न हुई, वहां अनेक तरह के उसको सुख प्राप्त हुए । वह शुक मर कर महाविदेह क्षेत्र में गन्धिलावती नगरी में शूर नामक
राजा की रयणा नामक रानी के गर्भ में उत्पन्न हुआ । गर्भ में जाते ही तत्काल रानी को दोहद उत्पन्न हुआ। * दिन २ दुर्वल शरीर होने लगा, एक समय राजा ने पूछा-हे प्रिये! तुझे कौनसा दोहद उत्पन्न हुआ, जिसकी चिन्ता से तेरा शरीर दुर्बल होता जाता है ?
यह सुन रानी ने कहा-हे प्रियतम ! अकाल में आम के फल खाने का दोहद उत्पन्न हुआ है सो कृपा कर पूर्ण करो, मुझे चिन्ता है कि वह किस तरह मिलेगा ? इससे मेरा शरीर दुर्थल होता जाता है; आप कोई
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