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के घातक चार घातीकर्मों का जड़मूल से नाश कर डाला है, ऐसे परमात्मा जीवन्मुक्त चरम शरीरी होते हैं । इस जन्म के बाद में वे जन्म धारण नहीं करते । और, जिसके चार घाती और चार अघाती (नाम-कर्म, गोत्र-कर्म आयुष्य-कर्म और वेदनीय-कर्म ) कर्म ये आठों कर्म जडमूल से नष्ट हो गये हैं, वे विदेह मुक्त परमात्मा अर्थात् सिद्ध-परमात्मा कहलाते हैं । जीवन मुक्त-देहधारी ( जिनेश्वरदेव ) परमात्मा अखिल विश्व के संपूर्ण स्वरूप को जानकर जगत के कल्याण के लिए समस्त संसार को कल्याण का सच्चा रास्ता बतलाते हैं । अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पाठ सिखलाते हैं। आधि, व्याधि और उपाधि-रूप त्रिविध ताप से संतप्त जीवों को अमृतवाणी के प्रवाह द्वारा अपूर्व बोधपाठ प्रदान करते हैं । विश्वशांति का सच्चा संदेश देते हैं। सच्चे सुख का भान कराते हैं । अज्ञान रूपी अंधकार को दूर-सुदूर हटा देते हैं और इन सबके बाद अन्त में मुक्तिपुरी के शाश्वत सुखों को दिलाते हैं।
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