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चार
उनमें बड़ी जिज्ञासा प्रकट हुई है। हमारी संस्था 'जैन-मिशन-सोसाइटी" के पास देश-देशान्तरों के कई लोगों को जैन-साहित्य के लिये माँग आ रही है; परन्तु जैन-दर्शन के भिन्न-भिन्न विषयों का निष्कर्षरूप (Nutshell form) एक छोटा निबन्ध हमारे पास तैयार न होने से हमारे सामने उनकी मांग पूरी करने का प्रश्न था । दैवयोग से इस वर्ष हमारे नगर के पुष्योदय से, महान् प्रभावशाली, प्रखर वक्ता, पूज्य आचार्य महाराज श्री श्री १००८ श्रीमद्विजयलक्ष्मणसरीश्वरजी महाराज का चातुर्मास हुआ और उनके विद्वत्ता से भरे हुए व्याख्यान श्रवण करने से यह भावना हुई कि, उन श्रीजी से ऐसा निबन्ध प्रकाशित करने की प्रार्थना की जावे । तदनुसार हमने प्रार्थना की और संतोषजनक प्रत्युत्तर मिला । अर्थात् उन्होंने अपने विद्वान् शिष्य पंन्यास श्री कीर्तिविजयजी गणिवर को इस बारे में संकेत किया। पूज्य कीर्तिविजय जी ने उनकी आज्ञानुसार सरल ढंग से
और सुन्दर शैली से सकल मौलिक विषयों का साररूप यह निबन्ध तैयार किया । इसमें प्रतिपादन बहुत ही युक्तिसंगत एवं बुद्धिगम्य है, जिससे आम प्रजा खूब लाभ उठा सकती है। पूज्यश्री के लिये दो शब्द प्रशंसा के कहे बिना रहा नहीं जाता; क्योंकि कुछ दिनों तक उनश्री के सत्संग का लाभ और उनके प्रशस्त पुरुषार्थ का अनुभव हुआ है। वे बड़े कार्यकुशल और कुशाग्र बुद्धिसंपन्न हैं। कवित्वशक्ति के साथ ही साथ लेखनशक्ति भी बड़ी प्रबल है और जैन मार्ग-प्रभावना तथा धर्म-प्रचार के लिये बड़ी उत्कंठा रखते हैं और उत्साहपूर्वक सतत प्रयत्न शील रहते हैं। उन्होंने यह निबंध लिखने के लिये जो परिश्रम उठाया है, उसके लिये धन्यवाद के पात्र हैं । मुझे आशा है कि पाटकवृन्द इस निबंध को आद्यन्त पढ़कर जैनधर्म का रहस्य समझने के साथ ही साथ आत्मविकास का यथार्थ लाभ उठावेंगे।
श्री पुडलतीर्थ Red-Hills
धर्मानुरागी P.O. Polal(Madras)
ऋषभदासः Dated 1-1.1954
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