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दिगंबर जैन ।
(६) दो अक्षरका मंत्र॥ " सिद्ध याने अहं । "
एक अक्षरका मंत्र । "ॐ" इसमें पंचपरमेष्टीके आदि अक्षर सर्व हैं। जैसे अरहंतका अ, अशरीर कहिये सिद्ध तिसका अ, आचार्यका अ, उपाध्यायका उ, और मुनिका म, ऐसे पांच अक्षर-अ अ आ उ म=ओम् अर्थात् ॐ हुवा ऐसा सिद्ध है ॥
॥ गाथा ॥ अरहंता अशरीरा आईरिया तह उवझाया मुणिणो । पढमक्खरणिप्पराणो ओंकारो पंच परमेठ्ठी ॥ १ ॥
अर्थ-ऊपरके सात प्रकारके महामंत्र कहलाते हैं। इनका जाप करना श्रेष्ठ है और कर्मबंधके एकसो आठ भेद अर्थात् द्वार है। इसका कारण १०८ मणि अर्थात दानेकी मालासे स्मरण करना चाहिये । माला ऊपर तीन दाने होते हैं उनपर सम्यकदर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ऐसा पढ़ना चाहिये ।
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मुनि महाराजका पद । ऐसे मुनी हमरे मनमें भायो । नाके बंदत पाप नसायो ।ऐसे०॥ च्यार वीस परिगृह जाने त्यागे । निग्रंथ नाम कहायो। तरण तारण वे मुनीवर । कहिए परम जती पद पायो ॥ऐसे०॥१॥
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