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आराधनास्वरूप ।
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बहुरि जो अन्न पान खाद्य स्वाद्य ऐसे च्यारिप्रकारका भोजन रात्रिविर्षे करै नही, करावै नही, अन्य भोजन करै ताकी प्रशंसा कर नही, तिसकै रात्रिभोजनत्याग नामा छदा स्थान है ॥ जो रात्रिभोजनका त्याग करिकै अर रात्रिके विर्षे आरंभकाहू त्याग करे है; सो एकवर्षमें छह महीनेके उपवास करे है ।। बहुरि जो अपनी विवाही स्त्रीकाहू त्याग करि स्त्रीमात्र विरक्त हुवा गृहमें तिष्ठे है अर अपनी स्त्री रागरूप कथा तथा पूर्वे भोगे भोगनिकी कथाकू वनिकरिके कोमलशय्या आसन विकाररूप वस्त्र आभरणके त्याग करिकै स्त्रीनितें भिन्नस्थानमें शय्या आसन ब्रह्मचर्यत्रत पाले है, ताकै ब्रह्मचर्य नामा सातवा स्थान होइ है ।
बहुरिजो सेवा कृषि वाणिज्य शिल्पि इत्यादिक धन उपार्जन करनेके कारण तथा हिंसाके कारण आरंभकू त्यागिकरि, अर अपने गृहमें द्रव्य होय तिनका स्त्रीपुत्रकुटुंबादिकनिका विभाग करि, अर अपने योग्य• आप ग्रहण करि, अन्यमें ममता त्यागि नवीन उपार्जनका त्याग करि, अपने परिग्रहमें संतोष करि, जो अपने निकट द्रव्य राखि लीया तावू अन्न वा वस्त्रादिक भोगनिमैं वा पूजा दान इत्यादिकमैं व्यतीत करता वा सज्जनादिकनिळू देता वांछारहित काल व्यतीत करें, ताकै आरंमत्याग नामा अष्टमस्थान होय है ।। इहां इतना विशेष जानना-जो आप अल्प धन अपने खाने पीने दानपूजादिकके निमित्त राख्या था, ताळू कदाचित् चोर वा दुष्ट राजा वा दायियादार वा कपूतपुत्रादिक हरण करै, तो नीचा नही उतरै, " जो मेरा जीवनेका निमित्त धन था, सो जाता रह्या,
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