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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८] दिगंबर जैन । करनेवाले भोजनका तो यावज्जीव त्याग करी यमही करै । अर योग्यविषयनिमैं कालकी मर्यादपूर्वक त्याग करि नियम धारै ॥ ऐसे समस्त पंच इंद्रियनिक विषयनिमैं यमनियम करै, सो भोगोपभोगपरिमाण नामा शिक्षावत है ॥ बहुरि जिनकै पुण्यके उदयतें नानाप्रकारकी भोगोपभोगसामग्री घरमें मौजूद तिष्ठे है, तिनमैं” अल्प ग्रहण करि बहुतका त्याग करे हैं अर आगामी कालमें भोगोपभोगकी वांछारहित हैं अर वर्तमान कालमें कर्मके उदयतें भोगनेमें आवे है, तिनमैं अति उदासीन हुवा मंदरागसहित भोगे हैं, तिनके व्रत इंद्रनिकरि प्रशंसायोग्य समस्त कर्मकी स्थितिका छेद करे हैं। ___ बहु समस्त चेतन अचेतन द्रव्यनिविर्षे रागद्वेषको त्याग करि साम्यभावकू आलंबन करिकै अर प्रातःकाल अर संध्याकालके विर्षे अविचल मन-वचन---कायकू करि अवश्य नित्यही सामायिकका अवलंबन करना, सो सामायिक नामा शिक्षात्रत है। सो सामायिक करनेके अर्थ क्षेत्रशुद्धता देखनी । जहां कलकलाट शब्द नही होय, जहां स्त्रीनिका आगमन नही होय, नपुंसकनिका प्रचार नहीं होय, तिर्यचनिका संचार नहीं होय, वा गीत नृत्य वादिनादिकनिका शब्दरहित कलह विसंवादरहित होय, तथा जहां डांस मांछर मांखी बीछू सादिकनिकी बाधारहित, शीत उष्ण वर्षा पवनादिकके उपद्रवरहित,एकांत अपने गृहमें निराला प्रोषधोपवास करनेका स्थान होइ, वा जिनमंदिरमें वा नगरपामबाह्य वनका मंदिर वा मठ मकान सूना गृह गुफा बाग इत्यादिक बाधारहित क्षेत्र होइ तहां सामायिक करनेकू तिष्ठै ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020069
Book TitleAradhana Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Harjivandas
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages61
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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