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आराधनास्वरूप ।
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बहुरि जिसमें जीवनिकी विराधना तो नही, परंतु उत्तमकुलमें ग्रहणयोग्य नही, ते अनुपसेव्य हैं। जाते शंखचूर्ण, गजके दंत,
औरहू हाड, गायका मूत्र, उंटका दुग्ध, तांबूलका उद्गाल, मुखकी लाल, मूत्र, मल, कफ, तथा उच्छिष्ट भोजन, तथा अशुद्धभूमिमै पड्या भोजन, तथा म्लेछादिकनिकरि स्पा भोजन, पान, तथा अस्पृश्य शूद्रका ल्याया जल, तथा शूद्रादिकका कीया भोजन, तथा अयोग्य क्षेत्रमें धया मोजन, तथा मांसभोजन, तथा नीचकुलके गृहनिमैं प्राप्त भया भोजन जलादिक अनुपसेव्य हैं । यद्यपि प्रासुक होइ हिंसारहित होइ तथापि अनुपसेव्यपणातें अंगीकार करनेयोग्य नहीं है बहुरि विकार करनेवाला भेष, वस्त्र, आभरण, नीच पुरूषनिकै योग्य, रागकारी कामादिकके बधावनेवाले चित्राम, गीत, नत्य, भंडवचनश्रवण इत्यादिह अनुपसेव्य हैं। तातै अनिष्ट अर अनुपसेव्यकू वर्जन करिकै जो न्यायोपार्जित त्रसनीवनिकी विराधनारहित भोजनादिक भोग अर वस्त्रादिक उपभोग, तिनमैं प्रमाण करि अंगीकार करै, तिसकै भोगोपभोगपरिमाण नाम व्रत हैं।
जो एकवार भोगनेमें आवै, सो तो भोजन, जल, पुष्प, गंधविलेपनादिकनिळू भोग कहिये हैं । अर जे वस्त्र, आभरण, स्त्री, शयन, आसन, असवारी, महल, इत्यादिक वारंवार भोगनेयोग्य ते उपभोग हैं । तिन भोगोपभोगका यावज्जीव त्याग करना, ताकुं यम कहिये हैं। अर जो एकदिन, दोयदिन, वा रात्रि, वा पक्ष, मास, चतुर्मास, एक वर्ष इत्यादिक कालकी मर्यादारूप त्याग करना, सो नियम है। तिनमें अयोग्य अनुपसेव्य त्रसनिका घात
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