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दिगंबर जैन ।
नही है, अन्यकं असत्यवचन नही बुलावै, तथा जो वचन कहै सो समस्त छ कायके जीवनिके हितरूप कहै अर प्रमाणीक कहै, अर समस्त जीवनिकै संतोष करनेवाला वचन कहैं, अर धर्मका प्रकाश करनेवाले वचन कहै, ताकै सत्य नामा अणुव्रत होइ है |
बहुरि विनादिया धनका ग्रहण करना, सो चोरी है । यातें कोऊ आपमें धन स्थाप्या होइ, वा कोऊ नगर ग्राम उपवन में पड्या होइ, वा जमी मैं पड्या होइ, वा कोऊ भूमी मैं पटक गया होइ, वा आपकूं सोपि भूलि गया होइ, ऐसा परधनका जो त्याग करें, सो अचौर्य नामा अणुव्रत है। तथा बहुत मोलकी वस्तु अल्पमोलमें । नही ग्रहण करे, अर गिया, पड्या, भूल्या, विस्मरण हुवा परके वस्तूको नही ग्रहण करे तथा अल्प लाभमें संतोष करै, ताकै अचौर्य नामा अणुव्रत है ।
बहुरि जो अपनी विवाहिता स्त्रीविना अन्य समस्त स्त्रीनिका त्याग करै, ताकै ब्रह्मचर्य नाम अणुव्रत है || बहुरि जो धनधान्यादिक समस्त परिग्रहका परिमाण करि तिसतें अधिकमें तृष्णाका अभाव करि संतोष धारण करै, ताकै परिग्रहपरिणाम नामा अणुव्रत होय है | ऐसें पंच अणुव्रत कहे || बहुरि लोके नाशके अर्थ जो यावज्जीव दश दिशानिका परिमाण, सो दिग्बिरतित्रत है || बहुरि जिसतें आपका कार्य तो कुछ सिद्ध नही होय अर जातै नित्य पापकर्मका बंध होइ, सो अनर्थदंड अनेकप्रकार है । तथापि सामान्यपणाकरि पंच भेद कहे हैं। पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुतिसेवन, प्रमादचर्या ये पंच
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