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आराधनास्वरूप।
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अर कर्म कोउर्दू कोऊ देनेडू समर्थ नहीं है । तातै अन्यकुं दूषण देना वा राग करना मिथ्या है । जो हितके इच्छक हो तो परम धर्म में प्रवर्तन करा ॥
बहरि जिस जीवके जिस देशमें जिस कालमें जिस विधानकरिकै जन्म वा मरण, सुख, दुःख, लाभ, अलाम, संयोग वियोग होना जिनेंद्र भगवान् केवलज्ञानकरि निश्चित जान्या है-देख्या है तिस जीवकै तिस देशमें, तिस कालमें, तिस विधानकरिकै तैसेंही होयगा। इसकू अन्यथा करनेकू चलायमान करने इंद्र वा अहमिंद्र वा जिनेंद्र समर्थ नहीं है। ऐसैं जो निश्चय नयतें समस्त द्रव्यनिके समस्त पर्यायगुणनिके परिणमनकू जाने है सो शुद्ध सम्यग्दृष्टि है। अर जो इसमें शंका करै सो मिथ्यादृष्टि है। बहुरि जो तत्व जाननेकू समर्थ नहीं है सो जिनेंद्रके वचननिहीमें श्रद्धान करे है। जो जिनेंद्र भगवान् दिव्य ज्ञान देखि करि कह्या है, सो समस्तमैं समयक् इच्छा करूं हूं-प्रमाण करूं हूं, ग्रहण करुं हुं ऐसा जाकै दृढ निश्चय है, सो मंदज्ञानी सम्यग्दृष्टि है।
सम्यग्दर्शनके पचीस दोष है-तिनकू टारि श्रद्धानकू उज्वल करना । तिनमैं मूढता तीन ३, अष्टमद ८, शंकादिक दोष आठ ८, अनायतन छह ये पचीस दोष हैं तिनमैं मूढताकू वर्णन करे हैनदीस्नानमें धर्म माने, समुद्रकी लहरीनिके स्नानमें धर्म माने, पाषाणका वालूका पूंज करनेमें धर्म माने, पर्वत” पडनेमें अग्निमें प्रवेश करनेमें धर्म माने, संक्रांतिमें दान करनेमें, ग्रहणमें स्नान करनेमें धर्म माने,
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