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___ एक बात की अावश्यकता हमें श्रोर प्रतीत होती है। वह यह कि इस ग्रंथकी रचना में जिन जिन अन्यान्य ग्रंथों में सहायता मिली है, उनके लेखको' एवम् प्रकाशकों के प्रति--चाहे वह स्वदेशीय हों या विदेशीय, प्राचीन हो वा अर्वाचीन-उनके नाम समेत धन्यवाद प्रकाश करना अनिवार्य कर्तव्य है।
अन्ततः हुन योग्य लेखकों के बहुवर्णे के प्रभूत..रिश्रम, अदम्य उत्साह एवम् आयुर्वेद की बाकी प्रशंसा करते हुए ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि इस महाकोप द्वारा श्रायुर्वेद के भाडार का एक बड़ा अंश पूर्ण हो तथा यद्य, छात्र-ममुदाय एवम् रुमार्च-जनता का इससे कल्याण साधन हो । कल्पतरु-प्रासाद, कलकत्ता । )
विद्वजनों का विधेयपोष, ऊप] चतुर्दशा, सम्बत् १९६० वि० । ।
श्रीनगनाथ सेन शर्मा
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