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® अयुर्वेदीयानुसंधान ग्रन्थमाला का प्रथम पुष्प छ
सर्प-विष विज्ञान
(ले० बाबू दलजीतसिंहजी वैद्य )
रचयिता
आयुर्वेदीय-कोष पुस्तक के सम्बन्ध में काफी सूचनाएं निकल चुकी हैं। अस्तु अधिक लिखना व्यर्थ है । पुस्तक क्या है? आज तककी प्रकाशित अप्रकाशित आयुर्वेदीय, युनानी, तथा डाक्टरीकी प्रायः सभी आवश्यक पुस्तको'का निचोड़। अस्तु इस पुस्तक के लिए 'गागर में सागर भर देने' की उक्ति ठीक ठीक चरितार्थ होती है। यही नहीं, अपितु इसका प्रत्येक स्थल निज अनुभव से श्रोतप्रोत है। बीसों वर्ष की सर्प-दष्ट-चिकित्सा एवं सद्विषयक अन शीलन व अनुसंधान के पश्चात जो जो मुझे सत्य एवम् परीक्षा सिद्ध मालूम हुए उन्हीं को इस पुस्तक में स्थान दिया गया। इसमें सर्प भेद, सर्प विष, सर्पदष्ट निदान व चिकित्सा, साध्यासाध्यता, प्रारम्भिक चिकित्सा, मायुर्वेदीय, युनानी तथा डाक्टरी एवम् स्वानुभूत चिकित्सा आदि प्रायः सभी श्रावश्यक ज्ञातव्य विषयो । शास्त्रीय, प्रामाणिक एवम् वैज्ञानिक ढंग से काफी प्रकाश डाला गया है। अंत में विच्छ एवम् ततैया डंक की स्वानुभूत चिकित्सा एवं लघुकोप देकर युस्तक को समाप्त किया गया है।
इसमें पेटेएट औषधोंका भी खूब ही भंडाफोड़ किया गया है। पुस्तक सर्व साधारण एवं वैद्यों के दैनिक उपयोग की चीज़ है। इसके द्वारा वे अपने एवं' औरों के प्राण की रहा कर खूब ख्याति प्राप्ति कर सकते हैं, साथ ही यश के भागी भी हो सकते हैं। इसी बात को ध्यान में रख एवं कई मित्रों के अनुरोध से इसका मूल्य भी।) के स्थान में १) कर दिया गया, जो इस पुस्तक की उपादेयता को ध्यान में रखते हुए अत्यल्प है। एक बार अवश्य मंगा कर परीक्षा कीजिये । यदि पसंद न हो तो एक सप्ताह पश्चात् लौटा देने पर डाक व्यय काट कर शेष मूल्य वापिस कर दिया जाएगा ।
देखिए इसके संबंध में बयों के प्राचार्य एवं प्रमुख पत्रिकाएँ क्या सम्मति देती है:महामहोपाध्याय श्री कविराज गणनाथसेन शर्मा सरस्वति विद्यासागर एम० ए०, एल० एम० एस०--
"I have gone though your bookand found it an elementary treate ise of excellent value"
कविराज प्रतापनारायणसिंह, रसायनाचार्य आयुर्वेदिक कालेज हिन्दू युनिवर्सिटी
"मैंने श्री दलजीतसिंह जी लिखित "सर्पविष विज्ञान" पुस्तक पढ़ी। यह पुस्तक "सर्प विष" पर की जाने वाली सब देशी विदेशी चिकित्सा का खासा संग्रह है। इसको पढ़कर पाठक सर्पविष चिकित्सा का अभिज्ञ हो सकता है और विज्ञ हो तो चिकित्सा भी कर सकता है। विद्वान लेखक ने संग्रह करने में बहुत परिश्रम किया है। माशा है इस उपयोगी पुस्तक का विझजनता लाभ उठा कर लेखक का उत्साह वद न करेगी" |
द त्रिवेदी बी० ए० आयुर्वेदाचार्य--पुस्तक वास्तविक में परिश्रमपूर्वक खोज के साथ लिखी गई है एवम् बढी महत्व की है। हिन्दी में सर्प सम्बन्धी:जो १-२ पुस्तकें प्रकाशित हुई है उनमें यह श्रेष्ठ है। ___ श्री रामनारायण मिश्र हेडमास्टर हिंदू सहल बनारस--मैंने सर्प-विष--विज्ञान पढ़ी। यह पुस्तक हर एक घर में होनी चाहिए । बालचर लोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है।
नोट-और भी बहुसंख्यक सम्मतियाँ एवम् पत्र पत्रकाओं की समालोचनाएँ मौजूद हैं। विस्तार भय से उन्हें यहाँ नहीं दिया गया ! पुस्तक मिलने का पता
मैनेजर-श्री हरिहर औषधालय,
बरालोकपुर इटावा, यू० पी० ।
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