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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मस्तुउसम ८२७ अहज मस्सुउसन as31-115 11.-१० सुफेद राई..हि। रावणान्येव पतन्मात्राण्युत्पद्यन्ते । सु० शा० सिद्धार्थक-सं०। ( Eruca sativa. )! १०। मेमा। ... अहतम् ahatam सं० क्ली. नूतन वस्त्र । (New अस्सुलेमानियुल, अकाल, assulananiyul ____cloth.) हला०। alkkāi-१० सुलेमानी, दाराशिकना,दार चिकना | अहत्तो ahatti-सि० कुम्बी, खुम्बी । (Careya '-हि.। ( Hydrargyri perciflori arborea, Rob.) मेमो०। dim:) बहन ahān-हिं० संज्ञा पु० [सं०] दिन । ' अस. ashab-१० श्वेताभायुक्त , रतवर्ण अहन् पुष्प a han-pushpa-हिं० संज्ञा प... प्याजी रंग, रोग-विज्ञान में श्वेताभायुक्र रक्र | [सं०] दुपहरिया का फूल । गुल दुपहरिया। वर्गीय कारोरह, ( मूत्र ) को कहते हैं। | अहर nara-हिं० सज्ञा पु० दोवा, पोखरा, सरो **(Arreservoir for collecting अई..ham-संव० [सं०] मै | (I). । । rain-water.) ___ संज्ञा पु- [सं०] अहंकार, अभिमान । अहरङ्ग aharanga-मल० काम अंगार, लकड़ी महः nhah-सं० लो० [सं० अहंन् । . का कोयला । Wood. charcoal (Carbo.:. मह aha-हि. संज्ञा पुं० . ) (3) दिवस, ligni)ई. मे०. मे। . . __दिन । ( Day.)। अमः । (२) सूर्य । अहरदृक् a haridrik-सं०पु गृध, गिद्ध पक्षी! अहङ्कारः aharikārah 1-सं० ( हिं० संज्ञा) शकुनी-बं० । वल्चर (A vulture.) । चैनिय०। प्राहकार ahankala ) [वि. अहंकारी] (1) अभिमान, गर्व, घमंड। (२) क्षेत्र प्रहरण aharana जय. महपुरुष की चेतना । इन्द्रियादि सम्पूर्ण शरीर- | अहरणी aharani. .] रन, अर. ध्यापी अहं अर्थात् मैं और मेरा के भाव की उन । विशेष प्रवृत्ति । ममत्व । वैकारिक, लैजस, एवं | अहरन aharan-f० संज्ञा स्त्री० भूत अर्थात् साविक राजस, तामस भेद से यह अहरनि aharani-हिं० संज्ञा स्त्री. तीन प्रकार का होता है। सांख्य के समान प्रायुः [सं० श्रा+धारण रखना] निहाई। वेद शास्त्रियों ने इसकी उत्पत्ति महत्तस्य से मानी | अहरह aharah-हिं. क्रि० वि० प्रति दिन । है । इनके अनुसार यह महत्तत्व से उत्पन्न एक (Everyday.) द्रष्य अर्थात् उसका एक विकार है। इसकी महरा ahara-हिं० संज्ञा पु० [सं० प्राहस्थ सात्विक अवस्था और तैजस की सहायता से ___=इकट्ठा करना ] 1-जादे में तापनेका स्थान । फंडे पाच, ज्ञानेन्द्रियाँ पाच कर्मेन्द्रियों तथा मन की का ढेर जो जलाने के लिए इकट्ठा किया जाए। उत्पत्ति होती है और तामस अवस्था तथा तेजस (२) वह प्राग जो इस प्रकार इकट्ठे किए हुए अर्थात् राजस की सहायता से पंच तन्मात्राओं .कंडों से तैयार की जाए। . .. को उत्पत्ति होती है, जिनसे क्रमशः प्राकाश, | पाका प्रहराक ahraq-अ० जलाना । लु०१०। .. वायु, तेज, जल और पृथ्वी की उत्पति होती है। हरित: aharitah-स.पु. पाण्डुरोग । हारिद.. यथा रोग । अथर्व० । सू०१२ । ३। का०११ "तहिकाच महतस्तवपण एवाहकार उत्पयते, | अहर्गण ahsrgana-हि. संज्ञा पु० [सं०] सतु त्रिविधो बैकारिकम्तैजसो भूतादिरिति; तत्र | दिनों का समूह। वैकारिकादहकारात् तैजस सहायातक्षणान्येवे महजबः aharjjavah-सं० पु. सम्वत्सर, कादसेन्द्रियारयुत्पयते; भूसादेरपि तैजस सहाया- वर्ष। ( A year.) के। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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