________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अष्टाधि
भसकुट
अष्टाश्रि ashrashi |
वि० [सं.]
(३) उत्सरापथ प्रसिद्ध वत्त लाकार पापण अष्टास्त्र ashrasta6० वि० [स] खण्ड (जे ज्वरः ) वा पत्थर की गोली । लोहार ___ पाठ कोने वाला, अकोना, अकोण।
की लोहे की दाँती, अस्त्र विशेष । गयदास । अष्टिः,ष्टिः ashtih, shrhih.. स्त्री
(४) प्रोस्टेट ग्रंथि विशेर ( Prosta. अष्टि ashri-हिं० संज्ञा स्त्री०
te glanil. ) (1) अली । अाँटी--बं०। (२) मींगी अष्ठि(प्रा)वान् asthi,-sithi, van-सं० पु.
(Nucleus)। नुवात--अ० देखो - सेल । (१) शूक रोग विशेष लक्षण-जो कड़ी और श्रष्टौषधिः ashtoushadhih.-स. स्त्री०
भीतर में विषम ऐमी वायु के कोप से पिड़िका हो ब्रह्मसुवर्चला, आदित्यपर्णी, नारीका;, गोधा,
वह 'ग्राफीलिका' है। यह विए युक शूकों से होती सर्पा, पना, अज और नीली ये श्रा3 अप्टी- हैं । सु० नि० १३ अ०। देखा-अलिका। बधि कहलाती हैं। चचि०१०।
(२) जानु । (khes ) रा०नि० व०१८ ।
अष्टावान्, त् : shthivi", t--सं० प अष्ठिला ashrhiika -स० स्त्रो०,
धुटना,
__जानु । ( Kuge) सु० शा० । अथव० । सू० अष्ठीला ashthila संहा स्त्री० (१)!
है | २१ । ०१०। अष्ठीलिका ashthitikā वायु रोग विशेष ।
! अष्टोला दाह sth hiladihia-f; पु. एक रोग जिसमें मूत्राशय में अफरा होने से
प्रोस्टेट ग्रंथि प्रदाह । ( Prost.titis ) पेशाय नहीं होता और एक गां पड़ जाती : अष्टोला विकार ashthili-vilkata-हि.प. है जिससे मलावरोध होता है और वस्ति में पोड़ा | प्रोस्टेट ग्रंथि के रोग। (1Disases of होती है। इसके निम्न भेद हैं
the prostate ). लक्षण-बह ग्रंथि जो ऊपर का उठी हुई तथा | अष्ट्राला वृद्धि ashthili.vridlti-हि-त्री. अप्ठीला के सहरा कठोर और पानाह के लक्षणों
प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना, याताष्ठोला । से युक्त होती है उसे श्रष्ठाला कहते हैं। वा० (Prostatic enlargement. ) नि०११ अ०। नाभि के नीचे उत्पन्न हई ! अष्ठालास्थित अश्मरा ishthilāsthitainen.
__m.iri-हि.स्त्रो० प्रोस्टेट ग्रंथि स्थित अश्मरी। इधर उधर चली हुई अथवा अचल जो एक ही स्थान में रहे ऐसी पत्थर की बटिया के समान !
( Prostatic calculi ) देवो-प्रश्मरी कड़ी और ऊपर को कुछ लम्बी और पाडी, कछ
वा प्रोस्टेट । ऊँची हो और अधोवाय. मल. मत्र इनको रोकने असलिन्नः asanklinmah-सं० वि० सम्यक वाली गानों को याताठोला कहते हैं। जो
रूप से घाई नहीं अर्थात् जो पूर्णतः क्लेदलक अत्यन्त पीड़ा युक्त वायु, मूत्र, मल को रोकने
(तर) न हो। यथा-"पिंटीकृतम क्रिसम् ।" वाली और जो तिरछी प्रगट हुई हो उसको। भा० पू०१ मा०। प्रत्यष्ठीला कहते हैं। मा०नि० वा. व्या०।.
असंयोग asanyoga-हि.. भिन्न, अनमेल ।
: असंलग्न sanlagna-हि. वि. जो मिला न बाग्म के अनुसार तिरछी और ऊपर को उ..
हो, असंयुक्क, अमिल। हुई ग्रंथि को प्रत्याला कहते हैं। वा० नि.;
: असकत asakata-
हिरोयालस्य, उास । ११०।
' ( Drowsiness. slothfulness.) (२) शूकरोग भेद । लक्षण-जो कड़ी और अरूकती asakati-हिं. प. प्रालसी, नीला । भीतर से विषम ऐसी आयु के कोप से पिडिका (Drowsy, lazy.) हो वह अष्टालिका है । यह विषयुक्त शूको से अलकुट asakuta-ले दक, फलञ्च, नंगकी-प होती हैं । सु० नि० १४ अ०।
. . (चनाब नदो)। मेमा ।
For Private and Personal Use Only