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रासायनिक संगठन - विधेनीन (Witha nin ) नामक एक प्रभावात्मक सत्व । यह एक प्रकार का अभिषत्र ( Ferment ) है जो उक पौधे के बीज द्वारा प्राप्त होता है और प्राणिज रेनेट (Animal rennet ) से बहुत कुछ समानता रखता है एवं उसकी एक उत्तम प्रतिनिधि है ।
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कथित करने से यह नष्ट हो जाता हैं और मद्य सार से अधःक्षेपित होता है एवं इसका उसके जमाने वाले गुण पर कोई प्रभाव नहीं होता । बीजसे ग्लीसरीन वा साधारण लवण (सैंधव ) के तीव्र घोल द्वारा इसका सत्य प्राप्त किया जाता है। इन दोनों विधियों द्वारा प्रस्तुत सत्व अल्प मात्रा में भी तीव्र जमाने का प्रभाव रखता है । प्रयोगांश- फल, मूल एवं पत्र |
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श्रीषध निर्माण - तव तैल आदि । प्रभाव - वामक, रसायन, मूत्रल और यह दुग्ध का जमा देता है ।
प्रयोग - सिंघ तथा उत्तर पश्चिम भारत एवं अफ़ग़ानिस्तान में यह रेनेट के स्थान में दुग्ध जमाने के काम श्राता है। देशी लोग इसके फल को थोड़े दुग्ध के साथ रगड़ कर इसको दुग्ध में उसे जमाने के लिए मिला देते हैं। डॉक्टर स्टॉक्स (१८४३ ) के बने से पूर्व ऐसा प्रतीत होता है कि इस और लोगों का कम ध्यान था ।
( नवीन ) फल वामक रूप से भी प्रयुक होता है और अल्प माত্রा ( शुल्क ) में यह पुरातन यकृद्रांगजन्य श्रजीशा" ( तथा श्रानाह शूल ) की औषध है। यह मूत्रल एवं रसायन है । बम्बई में इसको प्रायः काकनन ( Thysalis alkekengi, Willd. ) के साथ मिलाकर भ्रमकारक बना दिया जाता है। काकनज का आयात फ़ारस से होता है और अरबी में उसको काकनज वा हुज्जु काकनज कहते हैं । इनसीना ने इसकी काकमाची ( मको )त् रसायन लिखा और लोगों के लिए विशेष रूपसे लाभदायक लिखा हैं । उन दोनों पौधे रख
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अश्वगन्धाद्यघृतम्
शोधक रूप से प्रख्यात हैं । अधुना क्यु (ew) में किए गए हूकर (Sir. J. D, looker ) के परीक्षणानुसार यह निश्चय किया गया है कि १ उस पुनीर के फल ( Withania coagulans ) का १ क्वार्ट ( ४० आउंस) खौलते हुए जल में क्वाथ कर, इसमें से एक { Tablespoonful ) उक्र काथ १ गॅलन उष्ण दुग्ध की लगभग आध घंटे में जमा देगा ( फा० ० २ मा० ) । शुक फल में भी यह गुण हैं
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पक्क फल में अंगमप्रशमन एवं अवसादक गुण होने का अनुमान किया जाता है । ( ई० मे० प्रा० ) ।
अश्वगन्धा घृतम् ashva gandha-ghritam-० क्ली० असगंध के कषाय या कल्क में योगुना दुग्ध मिला उसमें घृत मिला कर पिकाएँ । जब घृत सिद्ध होजाए तब उतार एवं छान कर रक्खें ।
गुण- इसके सेवन से वातरोग का नाश होता हैं और पुष्ट करते हुए मांस की वृद्धि करता है। वंग से० सं० वातरोग-त्रि० ।
(अश्वगन्धा तैलम् ashvagandhá-tailam -सं० क्लां०] वातव्याधि में प्रयुक्त तेल विशेष | ० द० । प्रयोगाः ।
अश्वगन्धादि नस्यम् ashva-gandhadinasyam - सं०ली० श्रसगन्ध सैंधव, वज्र, मधुसार, मरिच, पीपल, मटऔर लहसुन को बकरे के मूत्र में पीस नस्य लेने से नेत्र स्वच्छ होते हैं । अश्वगन्धाद्य घृतम् ashvagandhadyagh. ritam सं० कां० ( १ ) अश्वगन्ध के कल्क ४ मा० को दुग्ध १० भा० में पकाकर बालकों को पिलाने से यह उनके यलकी बुद्धि करता है । नं० [सं० वाल०-तंत्र० ।
( २ ) असगंध मूल ९ प्रस्थ, दुग्ध २ श्राढ़क (५३२ तो० ), घृत १ प्रस्थ इनकोकोमल अग्नि पकाएँ । पुनः सोंड, मिर्च, पीपल, दालचीनी, इलायची, तेजपत्र, नागकेशर, चायविडंग,
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