SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 795
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अशोक अशोक वक्तव्य कोष-तन्तुओं पर इसका उसेजक प्रभाव होता चरक के चिकित्सा स्थान के ३० अध्याय है। गर्भाशय विकार विशेषतः (Uterine एवं सुश्रुत शारीर स्थान के २ य अध्याय में fibroid ) तथा अन्य कारण से उत्पन्न प्रदर की चिकित्सा विस्वी है। किन्तु वहाँ भशोक ! रत्रप्रदर में इसका बहुत प्रयोग होता है । का नामोल्लेख नहीं है। राजनिघण्टु कार को इसकी छाल का दुग्ध में प्रस्तुत काथ भाज भी अशोक का प्रदरनाशक गुप्य स्वीकृत नहीं है। तक कविराजी चिकित्साकी एक उत्तम औषध है। धरक ने वेदनास्थापन तथा संज्ञास्थापन वर्ग के | अर्श तथा प्रवाहिका में भी इसका उपयोग किया अन्तर्गत अशोक का पाउ दिया है (सू०४०)। जा चुका है। ई० जू०ई०। वेदनास्थापन का अर्थ मन्त्रानिवारक है इसमें शुद्ध संप्राही गुण प्रतीत होता है। (देखो--भगम प्रशमन)। टीकाकार चक्र (डीमक) पाणि लिखते हैं, "वेदनायो सम्भूताय तो निहं. स्य शरीरं प्रकृती स्थापयतीति वेदनास्थापनम् ।" इसके पुष्प को जल में पीसकर रामाश अर्थात् उपस्थित वेदना का निवारण कर शरीर (Hemorrhagic dysentery) में को जो प्राकृतिक अवस्था में बाए उसको वेदना. वर्तते हैं । (धैट) स्थापन कहते हैं। इसकी छाल का जन में प्रस्तुत काय भी जल. कविराजगण रकप्रदर में अशोक को वेदना- मिति गंधकाम्त (Diliate Sulphuric स्थापन रूप से नहीं, अपितु रनरोधक कह कर acid ) के साथ व्यवहत होता है । ई० मे० व्यवहार में जाते हैं। जिन सम्पूर्ण स्थलों में मे०। हठात् करोधकी आवश्यकता हो, उन उन स्थलों अभी हाल में ही इसकी छात्र के तरन सस्व में प्रमाववश अशोक का व्यवहार कराने से, प्रदर की ररप्रदर में परीक्षा की गई और यह लाभप्रद रोगी का स्राव कम होकर वेदना की वृद्धि होते प्रमाणित हुा । ( Indigenous Drugs हुए बहुशः रोगियों में प्रत्यच देखा गया है । Report, madras. ) सकल वैद्यक प्रथों की आलोचना करने पर ज्ञात __नोट-योदे हेरफेर के साथ अशोक के उपहोता है कि प्रदर में सर्व प्रथम अशोक का युक्र गुणों का ही उस प्रायः सभी प्राज्य प्रयोग वृन्दकृत सिद्धयोग नामक पुस्तक में व पाश्चात्य ग्रंथों में हुआ है। हुमा है । अशोकधृत का व्यवहार किस समय से हो रहा है, इसे ठीक बतलाना कठिन है। चक्रवस, वर्तमान अन्वेषक श्रीयुत प्रार० एन० भावप्रकाश, एवं शाङ्गधर में अशोकघृत का चोपरा महोदय स्वरचित ग्रंथ में अपने अशोक उहख दिखाई नहीं देता | "सारकौमुदी" नामक सम्बन्धी विचार इस प्रकार प्रकट करते हैं। संग्रह-ग्रंथ एवं वङ्गसेन सङ्कलित चिकित्सासार पृथकू किए हुए जरायु पर अशोक-रवक् द्वारा संग्रह तथा भैषज्यरत्नावली नामक ग्रंथ में अशोक वियोजित विभिन्न अंशॉ की परीक्षा की गई। धृत का उझेख है। सुश्रुतोक बातम्याधि में प्रयुक्त किन्तु उसका कोई व्यक्त प्रभाव नहीं हुमा । कल्याणकरावण के उपादानों के मध्य अशोक रक्रप्रदर एवं अन्य गर्भाशय-विकारों में यद्यपि का उलेख देखने में प्राता है। (चि०४म.) बहुशः शय्यागत रोगी-परीक्षक गण इसके बाभनव्यमत दायक होने की प्रशंसा करते हैं; पर यह औषध आयुर्वेदीय चिकित्सक गण संग्राही एवं गर्भाशया प्रत्यक्ष प्रभाव प्रकट करती हुई नहीं प्रतीत होती । वसादक रूप से इसके वृत्त स्वक् का प्रचुर प्रयोग इं० डू००। करते है। कहा जाता है कि गर्भाशयान्तरिक मांस-प्रशोकम् ashokam-सं० की. सन्तुओं ( Endometrium ) तथा डिम्ब- अशोक ashoka-हिं० संज्ञा पुं. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy