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डॉलस
साधारणत: खाली पेट में वेदना हुआ करती और आहार ग्रह करने पर वह कम हो जाती है । परन्तु, कभी इसके विपरीत होता है । उदराध्मान, प्राोप तथा दाह होता है । डकारें आती हैं, मी खाता है और प्रायः वमन हो जाता है । अर्वाचीन मिश्र देशीय चिकित्सक इस रोग को इन क्ररत्र लिखते हैं जिसको सही श्रंगरेजी पर्याय हार्टबर्न ( Heartburn ) है । और जिसको उर्दू में कलेजा जलना तथा हिन्दी में sure कहते हैं । अंगरेजी ( भांग्ल भाषा ) में इसे कार्डिएल्जिया ( Cardialgia ) भी कहते हैं जो अपने अर्थ के अनुसार वजूर लवाद का बिलकुल सही पर्याय है
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वज्लुमिअदह (आमाशय शूल ) - इसमें आमाशयिक स्थल पर कठिन वेदना होती है जिसकी टीमें वाम स्कन्ध पर्यन्त जाती हैं । वेदनाधिक्य के कारण रोगी बेचैन हो जाता है और जलशून्य मत्स्यवत् लोटता है तथा श्रामाशय के स्थान पर दबाता है ।
सूचना- तिब्बी ग्रंथों में वज्डलूनुवाद के जो लक्ष्य लिखे हैं वे वस्तुतः वजूउल्कुल्ब के लक्षण हैं । किन्तु वज्डलमिवदह ( श्रामाशय शूल ) के लक्षण भी इसके बहुत समान होते हैं। इसलिए रोगविनिश्चय में दिक्कत होती है । परन्तु वज्डलमिदह में तीच्ण प्रचेतता नहीं होती और न तात्कालिक प्राणनाश का भय होता है ।
अलमूल alamúl-सं० गायजुबाँ बम्ब० । अलमोल: alamossh. सं० पुं० मत्स्य भेद ( A sort of fish ) वै० निघ० । अलमोसा alamosa--हिं० श्र (इ)मली । ( Tamarindus Indicus.)
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अलम् alam अन्य [सं०] यथेष्ट । पर्याप्त । पूर्ण । काफ़ी । (Enough, sufficient. ) अक्रम alam-फा० (१) अदरक, मादी ( Zingiber officinalis ) देखोआई। (२) कंगुनी, चीना । ( Panicum verticillatum.)
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अम
लम् aalam - रसा० इबसाख, हरिताल | ( Yellow orpiment) अलम alam मल० कुम्बी-सं०, बं० हिं० । वकुम्भ - ते० । ( Careya arborea ) इ० मे ० मे० ।
अलम् alam o १ ( ० ० ), अलम alama-हिं० संज्ञा पुं०) पालाम ( ब० ब० ) | रंज, दुःख दर्द, कष्ट, वेदना, व्यथा, पीड़ा । पेन ( Pain ), एक ( Ache ) - ६० ।
हकीम जामीनूस के वचनानुसार मनुष्य का प्रकृतावस्था से अप्रकृतावस्था की ओर चला जाना "म" कहलाता है। फिर चाहे उसे उक्त अवस्था का बोध या ज्ञान हो अथवा न हो यथा - व्यथित व अचेत होना । किन्तु शेख का वचन है कि विरुद्ध वस्तु का बोध होना ही श्रलम् कहलाता है । यथा— किसी बुरे समाचार के सुनने
अथवा किसी तिक या स्वाद रहित वस्तु को चने से कष्ट प्रतीत होता है । अस्तु, दोनों परि भाषाओं के पारस्परिक भेद का परिणाम यह है कि जालीनूस श्रचेत व मूच्छित व्यक्ति को भी दुःखान्वित " मुब्तलाए श्रलम्” कहता है; किन्तु शेख चूँकि "अलम्" की परिभाषा में बोध व ज्ञान की सीमा निर्धारित करते हैं । अतः वे अचेत व मूर्चित व्यक्ति को दुःखान्वित नहीं कहते । वास्तव में यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो दुःख वही है जिसका बोध हो । अस्तु शेख की उम्र परिभाषा अधिक सही और अनुमेय प्रतीत होती है 1
नोट- प्राचीन फ़ारसी व अरवी तिब्बी ग्रंथों में ब्यथा के लिए वजूभू शब्द व्यवहृत हुथा है । किन्तु अर्वाचीन मिश्र देशीय हकीम अब वन (वेदना) के लिए प्राय: अलम् शब्द को व्यवहार में जाते हैं। अस्तु, निम्न शब्द शब्दों के ग्रंथों से उत किए गए हैं।
श्रतम् और वन का भेद-
उतामह कुर्सी के वचनानुसार जिस दर्द का बोध विशेष स्पर्श शक्ति द्वारा हो उसे वफा और जिसका बोध सामान्य अर्थात् सावतिक या सामूहिक बोध शक्ति द्वारा हो उसको अक्षम् नाम
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