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पर्याय-मकं ( ), दुर्नाम, गुदकील, गुत्राङ्कुरः (रा), अनामकं ( शब्द र० ), गुदकीलकः, गुदामयः, दुर्गामम्, दुर्नामा, दुर्नाम्नी सं० ।
पायह, प्रवासीर ( मक़सद ) उ० । हिमोरी. तूस, अमरूदिस, एमोरीदूस-यू० | बवासीर ( ० ० ), बासूर ( ० च० ), श्रमोरीतूस - अ० । पाइल ( Pile ) ( ए० ० ), पाइलज़ ( Piles ) ( ब० व० ); हीमोराइड (Hemorrhoid ) ( ए० ० ), होमोरॉइडस् (Hemorrhoids ) ( ब० व० )इ० । हीमोराइडीज (Hemorrhoides ) -फ्रां०। हीमोरॉइडेन ( Hemorrhoiden) |
- जर० ।
अर्श āarsh - अ० ललाट, छत, तख़्त, पैलेटबोअ ( Palate bones. ) - इं० । हिं० संज्ञा पु ं० (१) प्रकाश ( २ ) स्वर्ग | अकर्म arsha-karm-सं० क्लो० भिलावां । ( Semicarpus Onacardium. ) श्र कुठारः arsha-kucharah - सं० पु० वरनाग अर्थात् ६४ पुटित सीसा भस्म, अभ्रक सत्र, ताम्र और लोह भस्म प्रत्येक समान माग लेकर थोड़ी थोड़ी हरताल को चिटकी दे देकर लोह की कढ़ाई में पिघलाएँ और लोहको कड़छी से चलाते रहें । जव हरताल की हुगनी भूकी रूप जाए तब सब अलग निकाल कर पारा मिला पिष्टी बनाएँ और उस पिठी को भिलावें के वृक्ष की जड़ के पास १ महीने तक गाढ़ रक्खें। फिर निकाल कर गाय के दूध में डालें और इसमें पातालयंत्र से निकाला हुआ भिलावे का तैल एक चिकनी कड़ाही में डालकर उसमें पिछी डाल कर एक सेर तेल नारित करें। फिर भिलावे के तेल मैं गन्धक को भावित करके उस गन्धक की पुर देकर उपरोक्त पिष्टी के बराबर पारा लेकर कट सरैया के रस में कई भावना देकर धूप में रख भस्म कर डालें। फिर उस भस्म को उपरोक first भस्म में मिलाएँ। फिर क्रम से बन सूरन, निर्गुडी, मुरेठी, गोखुरू, हर जोर, सिधारी और
अपातनम्.
चित्रक इनके काथ से भावना में फिर भांगरे के रस की भावना दे सुखाकर रखलें । मात्रा - ३ रत्ती |
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गुण--- अर्श, मुख आँख के मस्से, प्लीहा, संग्रहणी, गुल्म, यकृत, मन्दाग्नि और कुष्ट को नष्ट करता है ।
अर्शकुठार रसः
arsha-kuthár-rasah - सं० पु० शुद्ध पारद ४ तो० गन्धक = पल, ताम्र भस्म, लोह भस्म, प्रत्येक १२ तो० त्रिकुटा, कलिहारी, दन्ती, पीलू, चित्रक प्रत्येक तो०, जवाखार, भुना सुहोगा प्रत्येक १-५ पल, सेंधानमक ५ पल, गोमूत्र ३२ पल, थूहर का दूध ३२ पन्त, सत्र एकत्र कर पात्र में रख मन्दाग्नि से पचाएँ । जब गाढ़ा हो जाए तो २ माशे की गोलियां बनाएँ ।
गुए- एक गोली नित्य सेवन करने से यह अर्शकुठार रस बवासीर को दूर करदेता है । वृ० रसरा०सु० अ० वि० । अर्शद arshad-० सोनामक्खी, तारामक्खी । Iron pyrites ( Ferri Sulphuretum. )
श्रर्शन कर्म arshan-karmm सं० क्ली०, व्रणों के खुरचने की विधि |
अर्श नाशक योग arsha nashakayoga -सं० क० पु० जवासा, बेल की छाल, अजवाइन और सॉ इनमें से एक एक के साथ भी पाडे के काथ का पान करने से अर्श की पीडा नष्ट होती है । ० सं० श्र० चि० १४ । प्रर्शपातनम् aishapatanam सं० की०
कंटकरञ्च, हड़, नागरमोथा, चिरायता, काला कुड़ा की छाल, सूरन, चित्रक, सेंधानमक, देवदाली ( चन्दाल ) तुल्य भाग ले चूर्ण प्रस्तुत करें ।
मात्रा - १० मा० 1 अनुपान तक
गुरु- इसको एक मास पर्यन्त भक्षण करने से बवासीर के मस्से गिर पड़ते हैं। वंगसे० सं० अर्श चि० ।
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