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अर्जुन
अर्जुन घृतम्
अस्तु इस बात का समझना अत्यन्त कठिन है ! (यथा प्रावाहिकीय श्लेष्मस्राव तथा प्रदर संबन्धी किइसकी अलग अलग जातियों के इन्द्रयव्यापा- रक्त स्राव इत्यादि) में अर्जुन स्वकू का प्रयोग रिख एवं प्रौपयोगिक प्रभाव पृथक् पृथक् है । अस्तु । करते हैं। वे प्रश्मरी व शर्करादि प्रतिषेधक रूप प्रागुक शोधों की पुष्टि हेतु विशेष अध्ययन ! से भी इसका म्यवहार करते हैं। ( मे० मे०
ऑफ ई०-भार० एन. खोरी, २ य खं०, युनानी मन
२५० पृ० । फा०ई०२भा०११पृ० दत्त.) प्राचीन यूनानी ग्रंश में अर्जुन का वर्णन ! यह पैतिक विकारों में लाभप्रद तथा विषो' नहीं मिलता। हाँ! वर्तमानकालीन लेखकों ने का अगद है । त्वक् कषाय और ज्वरम्न है। इसका कुछ सामान्य वर्णन किया है। उनके। फल वस्य तथा रोधोद्धाटक एवं नवीन पत्र. मतानुसार यह
स्वरस कर्णशूल में हितकर है। प्रकृति-उष्ण व रूक्ष २ कक्षा में, किसी
(बेडेन पावेल पंजाब प्रॉबक्ट) किसी के मत से ३ कक्षा में । रंग-श्वेतामधूसर । काँगदा में स्वक् क्षत प्रभृति में प्रयुक्र होता स्वाद-बिका । हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को है। (स्ट्युबर्ट) तथा प्राध्मानजनक है। दर्पन-मधु,घृत व तैल। अर्जुनम् arjunain-सं० लो० तृणमात्र (Gr. प्रतिनिधि-पलाश स्वक । प्रधान कार्य-काम asses.)। हला०। (२) सुवर्ण । Gold शक्रिवद्धक तथा शुक्रमेहघ्न । मात्रा-३ मा० से
(Aurum) मे० नत्रिकं । (३) कासतृण । मा०।
(Saccharum spontalleuni.) र ___ गुण, कर्म, प्रयोग–कफविकारनाशक,
मा० । (४) दर्भ भेद, कुश (Poa eyn. है और पित्तदोष में लाभप्रद है। तत में इसका
Osuroides.)।(५) श्वेत वण के या पान व प्रलेप हितकर है। इसकी छाल कामो
कुटिल गति से जाने वाले कीट ! अथ० सू० हरीपक है एवं शुक्रमेहघ्न है । ( लगभगविषैल)
३२ । ३ | का०२। म.मु.।
अर्जुन arjuna-हसंज्ञा पु० पुन्यन (Ehratia इसके अतिरिक्र इसकी वाल शुक्रतारल्य एवं
acuminata. ) मेमो०। (२) पुक, मजी व वदी के पतलेपन तथा कामशक्ति के लिए
बड़ा गाछ-बं०। भूताकुमम्-ते.। घनसुरा हितकर है ।यह मूत्रप्रत्रावाधिक्यको नष्ट करता है।
म० । गोटे-सन्ता। (Croton oblon. कामशनिके बढ़ाने के लिए कतिपय वलय औषध
gifoliug ) फा. ई०। देखीमें योजित कर इसका हलुवा लाभदायक होता अजुन गाछ arjunargachh-बं० प्रज'न. है। भारतीय इसका अधिकता के साथ उपयोग कहू, काह । ( Terminalia arjuकरते और इसको परीक्षित बतलाते हैं; परन्तु
na. ) यह उतना सस्य नहीं । बु० मु०।
अर्जुन घृतम् arjuna-ghritam- क्लो. नष्यमत
(३) अर्जुन की छाल के रस और कल्क से अजुन स्वक कषाय तथा यस्य है। यह होगी! सिद्ध किया घृत समस्त हृदरोग के लिए के लिए उपयोगी है। इस प्रण तथा पिष्टमंग लाभदायक है। भे०र०।। प्रक्षालन हेतु इसकी छाल के क्वाथ का स्थानिक (२) अर्जुनकी छाल के दकसे तथा स्वरस से उपयोग होता है। अस्थिभग्न किम्वा नेत्र शुक्र . पकाया हुश्रा धी सम्पूर्ण हृदय रोगों में हितकारी गत स्कूली अर्थात् अर्जुन ( Eechymo.: है। योग तथा निर्माण-विधि-धृत ४ २०, sis ) में अर्जुन स्वक् को पीस कर प्रलेप करें। अर्जुन स्वरस ४ श०, कल्कार्थ अर्जुन एतद्देशीय लोग रति किम्वा अन्यान्य प्रस्तावों । त्वक् । श० । सा० कौ० । भैष ।
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