SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 700
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रचिः इच्छा होने पर भी नहीं खाता, ऐसा रोगी सुख साध्य होता है 1 ६५८ चिकित्सा - हिंसात्मक ग्रहों को वेक्षक मन्त्रों द्वारा वं होमादिसे जय करें । अर्चाकामी ग्रहों को यथाभिलाषित वलिप्रदानादि से जय करने का उपाय करें । वा० उ० अ० ३ । श्रर्चिः archih - सं० स्त्री० की ० श्री archi-सं० स्त्री० [हिं० संज्ञा स्त्री० (१) अग्निशिखा, लांगलिक, करिहारी । (Gloriosa superba.) 1 (2)afiatal, गजपिप्पली ( Pothos officinalis ) । (३) चमक, आँाँच, ज्योति, दीप्ति, तेज ( Light, splendour.) । ( ४ ) अग्नि आदि की शिखा । ( २ ) किरण | श्रर्तिमान archimana - हिं० वि० [सं०] अर्चिष्मान् archishman हि० संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० श्रर्चिष्मती ] ( १ ) श्रग्नि: ( Fire ) ( २ ) सूर्य ( The sun ) - वि० [सं०] दोप्त | प्रकाशमान | चमकता हुआ |( Lighted. ) अत्र archi-ता० काञ्चनार, कचनाल (र) । ( Bauhinia racemosa, Jaur. ) मेमो० । अर्ज āarn - अ० (1) पी-लु (Salvadora persica.)। ( २ ) दर्शनशास्त्र ( हिकमत ) की परिभाषा में उस वस्तु को कहते हैं जो दूसरे के आधार से स्थित हो अर्थात् जिसका अस्तित्व दूसरे के आधार पर हो 4 उदाहरणतः रंगीन कपड़े में जी रक्ता, श्यामता या श्वेतता प्रभूति वर्ण पाए जाते हैं वे "अ" हैं और स्वयं कपड़ा उनका मूलाधार है। और पदार्थत्व अर्थात मृदु, लघु, सूक्ष्म प्रभृति गुण पदार्थ के अस्तित्व को प्रगट करते हैं अर्थात् वे पदार्थाति हैं तथा "अ " या गुण कहलाते हैं। क्रियादमक लक्षण, धर्म, स्वाभाविक गुण, लक्षण प्रभृति इसके पर्यायवाची शब्द हैं । क्वालिटी ( Quality ) इं० । अर्जकादिटिका श्रर्ज arja श्ररीज arija - ० झुकना, सुगन्ध फैलना । यू ( Perfume.) अजं a12-० (1) पृथ्वी, भू.. एक तत्व विशेष | (Earth) देखी-- तत्व । ( २ ) चौड़ाई । श्रायत । श्र - हि० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्ज़ह arzah - अ० दीमक । (White ant.) अर्जकः arjakah - सं० पु० (:) } तुलसीअर्जक arjak - हिं० पु० भेद, बावरी - हिं० : बाबुइतुलसी- बं० | अजूबला गर्गेर-कं० । तेल्लगग्गेरचेछ - ते० | (Ocimun Basilicum ) । पर्याय - श्वेतच्छद्रः, गन्धपत्रः, पत्ता, कुरकः । "वर्वरिकाकारो लघुमञ्जरीकः सूक्ष्मपत्रः निर्गन्धः श्वेत कुठेरकः ( बाबुई) ।" सु० सू० ३८ ० सुरसादि ० | श्वेत वर्वरी ! शादा बाबुई-बं० भा० पू० १ भा० । श्वेत पर्णासः, श्वेत तुलसी, तोकमारी । सि० यो० विसूची- त्रि० वमन शान्ति । श्रर्जक श्रर्थात् वावरी श्वेत, कृष्ण तथा रक्क भेड़ से तीन प्रकार की और तीनों गुण में समान होती हैं। गुण- कटु, उष्ण, वात कफ रोगनाशक, नेत्र रोगहर, रुचिकारक तथा सुखकारक है | रा०नि० १० | देखो वो ( बनतुलसी, विश्वतुलसी ) | ( २ ) श्वेतपलाशवृक्ष । Butea frondosa (The white var. ) श्रर्जकर्ज: arjakarjah-सं० पु० यमन वृक्ष, श्रामन (ना), पिया शाल | ( Terminalia tomentosa. ) देखो - आसन । श्रर्जकादिवaिrjakadi vatika-सं० स्त्री० सफेद तुलसी मूल, शंखाहुली मूल, निर्गुण्डी, भांगरे की जड़, जायफल, लवंग, बिग, गजपीपल, चातुर्मात, वंशलोचन, श्रनन्तमूल, मूसली, शतावरी, विदारीकन्द, गोखरू सब को कांकर की छाल के रस में खरल करके १-१ मा० की गोलियाँ बनाएँ । अनुपान - सुरामण्ड । यह गोलियाँ स्तम्भक और नृत्य हैं मै० २० श्री० स्तं० । : I For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy