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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्गाटा अर्गेटी इसमेंसे एक चाय के चम्मच भर औषध प्रति , अतएव प्रसधानन्तर होने वाले किसाव में अगंट श्राध अाध घंटे के अन्तर से प्रयुक्र करें। एक अत्यन्त चमत्कारिक औषध है । उन नोट नाइटोग्लीसरीन को बड़ी मात्रा में देने । बहुप्रसूता नारियों को जिनमें प्रसव के पश्चात् से जो विपाता उत्पन्न होती है उसका तथा प्रायः रक्रमाव हुआ करता है, प्रसव के बाद अधिक परिमाण में क्वीनीन के प्रयुक्र करने से तत्क्षण अर्गट का उपयोग लाभदायक होता है। हुई मास्तिष्कीय विकार का अर्गट एक उत्तम और यदि इसके प्रयोग में कोई प्रात रोधक न अगद है। हा ती प्रसवस पूर्व भी इसे दे सकते हैं। कतिपय अगंट के थेराप्युटिक्स अर्थात् उपयोग प्रधान रोगियों को प्रमोनिएटेड टिंक चर ऑफ ' (वहिर प्रयोग) अगट या लिक्विड ऐक्सस्ट्रक्ट श्राफ अगट १ से कभी कभी गलगरड (गॉइटर ) और धाम- - २ ड्राम की मात्रा में दिन में ३-४ बार देते हैं नीयावुद (एन्युरिजम ) के समीप श्रगोटीन का या हाइपोडर्मिक इजेक्शन ऑफ अगट को स्वस्थ अन्नः क्षेप करने से लाभ होता है । गुद- १०मिनिमि की मात्रामें २-३ बार प्रयुक्र करते हैं । भ्रंश ( Prolapstus of the rectum) सप्रदर एवं कई प्रकार के गर्भाशयिक प्रबुदों की में यदि प्रति ढ़सरे वा तीसरे दिवस गुदसंकोचनी रक्त खति में भी उन औषधि के प्रयोग से उत्तम पेशी वा स्वयं गुदा में ३ ग्रेन अगाटीन का परिणाम प्राप्त हुए हैं। ऐसी दशा में गर्भा. स्वस्थ अन्तःनेप किया जाए तो कहते हैं कि शयिक द्वार में अगों टीन की पिचकारी करनी उन व्याधि की निवृत्ति होती है। चाहिए। श्रान्तर प्रयाग अगट चैं कि रक्तवाहिनियों का संकुचित साागिक रक्तस्थापक रूप से अगट अब तक करता है; अस्तु कभी कभी इसका पप्युरा ( रक्त विख्यात है और सम्पत्ति इसको श्राभ्यन्तरिक विकार जन्य विस्फोटक ), प्रवाहिका, प्लीहवृद्धि, शाणित क्षरण यथा नासाशं द्वारा रक्तस्राव होने , सौषग्न कान्यि ( स्पाइनल स्क्लोरोसिस) एवं अर्थात् नकसीर ( pistasis ), सौपुस्नस्थ रक्तसंचय (Spinal congeरक्रनिष्ठीवन (Homoptysis ), र वमन stion), धर्माधिक्य और मधुमेह (डायाबेटीज़ ( Humantcomesis ) और रकमूत्रता ।। इन्सिपिडस) प्रभृति रांगों में भी बनते हैं। अतः (Himaturit) प्रभूति रांगों में वर्तते हैं। . यमाजन्य रात्रिस्वेदकं रोकने के लिए इसका प्रयोग व्याधियोंकी ऐसी उग्रावस्था पत्र भयानक रागियों करते हैं। में प्रति १५ वा ३० मिनट के अन्तर सं अगट. अर्गट को अधिकतर शिशु प्रखबानन्तर प्रयोग का स्वकम्य वा गम्भीर अन्तःक्षेप करना उपयोगी में लाते हैं। क्योंकि प्रसव के पश्चात् इसको देने है। अान्तरिक अवयवों की रक्कम ति में रतस्थापक से गर्भाशय भलीभाँति संकुचित हो जाता है, एवं रूप से प्रगट का उपयोग बुद्ध यामक नहीं, अमरापातन में सहायता मिलती है और जरायु प्रत्युत ग्रानुभविक है । इस बात का ध्याग में द्वारा राम्राब नहीं होने पाता । परन्तु प्रसव से अाना अत्यन्त दुश्तर है कि जो औषध धमनियों पूर्व इसका उपयोग अत्यन्त चतुरतापूर्वक करना .. को संकुचित कर भार को वृद्धि करती हो यह चाहिए । अन्यथा जरायु संकोच के कारण गर्भ के किस माति रकस्थापक ( हीमोस्टं टिक ) हो - नष्ट हो जाने की आशंका होती है या. गर्भाशय ... सकती है? के विदीण हो जाने का भय होता है। क्योंकि .. परन्नु गर्भाशय जन्य रकम ति पर जो इसका . इसके प्रयोग द्वारा जरायु न केवल क्रमशः बल रस्थापक प्रभाव होता है, वह अधिकतया जरा- । पूर्वक आकचित होने लगता है, बल्कि वह .. यस्थ मांस पेशियों के संकोच के कारण होता है। प्राधिक काल नक संकुचित रहता है. और यही For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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