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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मर्कमति रसः धर्क लोहाम्रकम् रूमी, बालछन, तुरूम ख़बूजा, तुरूम कामनी अर्क म लम् arka-raulam-सं० फलो. इसी सौंफ की जड़, कासनी की जड़, करप्स (अज नाम से प्रसिद्ध है। एक वृक्ष विशेष। च०६० मोदा)को जड़, इज़खिर की जड़ प्रत्येक तो..| अग्निमा. चि. क्षार गड।। मकोय की हरी पत्ती का फाड़ा हा पानी. कासनीक मला arka-imula- स्त्री. ईश्वर मूल, की हरी पत्ती का फाड़। पानी प्रत्येक २ र शुद्ध ईशर भूल-बं० । ज़राबन्दे हिन्दी-अ०, फा० । सिरका १ सेर सम्मिलित कर यथाविधि अर्क (Aristolochin Indica.) रत्ना० । परिख न करें। धुम्र arkamuladi dhumra मात्रा ब सेवन-विधि---५ तोला अर्क प्रति . -सं० फ्ली० श्राक की जड़, मैनसिल समान दिवस प्रातः काल सेवन करें। भाग, त्रिकुटा अर्ध भाग इनका चूर्ण बना धूम्रपान गणधर्म- यह अर्क समस्त उदरीयावयचों के : करके ऊपर से ताम्बूल खाने से अथवा दूध पीने शोथ का लयकर्ता है। से ५ प्रकार की खासी का नाश होता है। वृ० विशिष्ट गुण यकृद शोथ तथा प्रीहा शोध नि०र०। के लिए विशेष कर लाभप्रद है। नि. का. अर्क' याविस arq:yabis-अ० कल्क़निया भा०। । (जङ्गबारी) अर्क मूर्ति रसः alka imurti-lasah - सं० अर्क लवणम् arka-lu.vunan-सं० क्ली० • यह रस सन्निपात ज्वर में प्रयुक है। भै० अर्कक्षार, मन्दारहार । (Al alkaline of ज्व. चि। Calotropis gigantea.) वै० निघ। भ र्ती रसः arkaimurtirasah-सं०५० अर्क लेप alka-lepa सं० कली. पुष्कर मूल, ताम्बे के पत्र के दोनों तरफ बराबर पारा और दालचीनी, चित्रक, गुड़, दन्तीबीज, कट और गन्धक लपेटकर हांडी में रखकर ऊपर से हांडी कसीस को पाक के दूध में पीसकर लेप करने से का मुख बन्द करके दो पहर तक तीन अग्नि में : कर्णमूल का नाश होता है । वृ०नि०र० । पकाएँ; फिर स्वांग शीतल होने पर ताम्बे के पत्र अर्क लोकेश्वगं रस ka-lokash vurora. के बराबर बरछनाग और उतना ही गन्धक मिला- sah-सं०० ४ तो० शुद्ध पारामें श्राकके दूध कर चित्रक के क्वाथ और अदाब के रससे भावना को बार बार भावना दें, फिर ८ तो० शुद्ध गन्धक दें। मात्रा--1 रत्ती । और ३२ तो० शंख बड़ा इन दोनों को चीते के गुण-यह सूजन पांडु, कफ और वातरोगों को ! रस से तीन दिन तक कई बार भावना दें। सूखने नष्ट करता है। इसपर लघु पथ्य खाना उचित । पर उपयुक पारे में मिला दें। फिर उसमें पारे है। रस. यो० सा०। से प्राधा सोहागा मिलाकर पाक के दूध से एक अमूल arkamila-हिं० संज्ञा पु० [सं०] पहर भावना दें। जब वह सूख जाए तो एक इसरमूल लता । हिमूल । अहिगंध । हांडी में चना पोतकर औषध को रखकर चूना इसकी जड़ साँप के काटने में दी जाती है। पोते हुए ढकन से ढक कर धारीक मिट्टी का लेप विच्छू के डंक मारने में भी उपयोगी होती है। ढक्कन के चारों तरफ कर दें, फिर लघु पुट दे। यह पिलाई और ऊपर लगाई जाती है। स्त्रियों के __ मात्रा.-४ रत्ती। अनुपान--बी, मिर्च । मासिक धर्म को खोलने के लिए भी ग्रह दी जाती पथ्य--दही, भात । रात को इस पर भांग है । कालीमिर्च के साथ, हैजा, अतिसार श्रादि । और गड़ सेवन करना चाहिए। पेट के रोगों में पिलाई जाती है । परों का रस कुछ गुण--संग्रहणी के लिए यह अनुभूत है। मादक होता है । छिलका पेट की बीमारियों में | रस यो सा । दिया जाता है। रस की मात्रा ३० मे १०० बूद अर्क लोहाभाकम् arka-lohabhrakam-सं० तक है। क्ली विदारीकन्द, पिण्ड स्वजर, जवामा, अनीस, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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