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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनेरुल्ली ६१२ अनेरुली alunelli-जा० हरफा रेवड़ी, लवली। अरुषास: arushasa!!-सं० ० रोष रहिस। अरुनोदय rumodaya-हिं० संज्ञा पु० दे०- अथ० । सू० ३।३ । का० ३ । अरुणोदय । श्ररुष्कः arushkah-सं० ० अरुन्धती undhati सं० स्त्रो. जिह्वाग्र । जिह्वा अरुक arushka-हिं0 संज्ञा पु. - की नोक वा फॉक । ('The foretongue.) मल्लानक वृत, भिलावाँ । भेला गाछ-६० । वै० निध० । दे०-अरु यती । विधवा-म । ( Semecarpus anac arlium-) भा०पू०१ भा० । रा०नि० अरुधनी alandhuti-हिं. संज्ञा स्त्री० [सं० व०१३ अरुन्धती] (1) बहुत छोटा तारा जो सप्तर्षि अरुष्कर: arushkarah-सं० पु. (.) मंडल स्थ वशिष्ठ के पास उगता है। सुश्रुत के . भल्लातक वृत, भिल बाँ। ( Semecarpus के अनुसार, जिनकी मृत्यु समीप होती है, वह । anacardium. ) प० मु०। रा० नि० इस तारे को नहीं देख सकते। व०११ । भा० पू० १ भा० । मद० व०१॥ (२) तंत्र के अनुसार जिह्वा । (२) अरुषिका । -त्रि० (३) अणकृत, (३) घाव को पूरने वाली श्रोषधि, ब्रणपूरक ग्रणजनक । मे० रचतुरकं । औषध, श्ररुप | अथर्व० । सू० २।२। अरुपकरम् arushkaram-सं० श्लो० भल्लातक का०४। फल, भिलावाँ ( Semecarpus ana. अरुषिका artunshika-स०स्त्री,हिं० संज्ञा स्त्री० | cardium.) च० द० अर्श चि०। भैष एक तह रोग जिसमें कफ और रक के विकार या कुष्ठचि० पञ्चतिक घृत । "सनागरारुष्का युद्धकृमि के प्रकोप से माथे पर अनेक मुंह वाले दारकम् ।" सि.यो. चतुः सम लौह । १० सू. फोड़े हो जाते हैं । शिरीवा | शुद्ररोगान्यतम ४ . कुष्ठम्नव.। कपाल रोग भेद । मा०नि० । | अरुस arusa-हि. पु. अडसा, वासक । अरुवा aura-हिं० संज्ञा पुं॰ [सं० अरु] (Adbatoda vasika.) (१) एक लता जिसके पसे पान के पत्ते के सदृश होते हैं । इसकी जड़ में कन्द पड़ता है। प्रसिमन arusinal-यू. ब. लखम-खुम, और लता की गाँठों से भी एक सूत निकलता है बल-हवह, कसीस-प० । कदम-इस्फ़हान ! जो चार पाँच अंगुल बढ़कर मोटा होने लगता मारदररूत । किरमान । दरीना तिमी । (Lepi. है और कन्द बनता जाताहै। इसके कन्दकी तरकारी lium ibraris, Linu.)-ले०1 (Pepp. बनती है । यह खाने पर कनकनाहट पैदा करता er grass, pupperwurt)to Passeहै । बरई लोग इसे पान के भीटे पर योते हैं। rage iberide-फ्रां० । देखो तोड़ी । संज्ञा पुं० [हिं० रुरुपा] (An on}.) फा००१ भा। उल्ल, उलूक पदी । हिं० श० सा० । भरुनाणम् ausranam-संकी०(१) या अरुषः armshah-सं० ० (१) पण, इस दोषों को शीघ्र पकाने वाली प्रौपच । (२)प्रण, (Vranah.) (२) घोटक, अश्व । (Horse.), फोड़ा । अथर्व । सू०३।४। का०३। वै. निघ०। (३) व्रणपूरक औषध, अरु- अरुहा aruha - स. खा., -हिं. संशा पु. न्धी । अथवं० । सू० १२ । का० ५। भूधात्री, भुई अामला, भूम्यामलको । (Phy. अरूषा, टा arushaita-सं० स्त्रो. भूम्यामल की, lanthus neruri.) 8 ई श्रामला । (Phyllanthus neruri.) | अमक āaruqa-अ० स्वेनक औषध । ( Diaph. .. रा०नि० व०५! _____oretic) For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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