SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अरिष्टः www.kobatirth.org ६०४ गुण- प्रायः नवीन मद्य गुरु, और वायु कारक होते हैं और पुरान होने पर स्त्रोतशोधक, दीपन और रुचिक होते हैं । ( च० सू० श्र० २ ) जिस द्रव्य से अरिष्ट बनाया जाता है उस द्रव्यका गुण उसमें रहता है। मद्य के सम्पूर्ण गुण इसमें विशेष रूप में रहते हैं । ग्रहणी, पांडु, कुछ, अर्श, सूजन, शोष रोग, उदर रोग, ज्वर, गुल्म, कृमि और तिल्ली इन सब रोगों को दूर करता है एवं यह कंशय, तिक तथा वातकारक है । यथा--- "यश्राद्रव्य गुणोऽरिष्टः सर्व मद्य गुणा त्रिकः । ग्रहणी पांडु कुष्टाः शोष शोफांदर ज्वरान् । हन्ति गुल्म कमिलोहान कवाय कटुवालश्च ।" वा० सू० ५ ४० मद्य० व० । अर्श, शोथ, महणी तथा श्लेमरोग नाशक 1 दधा - "श्रर्श शोध ग्रहणी श्लेष्म हरत्वम् " राज० । हैं मात्रा - १ तो० से २ तो पर्यन्त । सेवन काल -- प्रायः सभी अरिष्टासव भोजन के पश्चात् पिए जाते हैं । परन्तु रोग और रोगी की परिस्थिति के अनुसार समय में फेर फार भी किया जा सकता है । सेवन विधि - श्ररिष्ट या घासत्र में समान भाग जल मिलाकर सेवन करना उचित है; क्योंकि पानी के साथ सेवन करने से इसका प्रभाव शीघ्र होता है एवं जल रहित सेवन करने से गले औौर सीने में दाह उत्पन्न होने लगती है । नोट- जो औषधों के स्वाथ और मधुर वस्तु तथा तरल पदार्थों से सिद्ध किया जाए वह अरिष्ट है और जो अपॠव औषधों और जल के योग से सिद्ध किया जाए वह आसव कहलाता है। रत्ना० । -ली० (७) सूतिकागार। सूतिकागृह । सौरी | ( Lying-in chamber ) (८) आसव | ( १ ) मरणचि मृत्यु चिह्न, अशुभ चिह्न, अपशकुन ( Sign or gy. pa tom 01 prognostication of death.) देखो-अरिष्ट लक्षणम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्ररिष्टलक्षणम् (१०) तीन भाग दधि और एक भाग जल द्वारा प्रस्तुत तक, मट्ठा। घोल बं० रा० नि० च० १५ । ( ११ मरणकारक योग | ( १२ ) काढ़ा, काथ ( Decoction ) (१३) क्जेरा, दुःख, पीड़ा । ( १२ ) उपद्रव, थापत्ति । श्रि० हिं०वि० (१ अशुभ बुरा ! सर्वत्र मे ० । ( २ ) सामान्य मद्य | रा० नि० ० १४ । (३) शुभ । ( ४ ) हद, श्रविनाशी । अरिष्टकः arishtakaah सं० पु० अरिष्टक arishtaka - हि० संज्ञा पुं० ( १ ) फेनिल वृक्ष, रोने का पेड़, रोटा करन Soapnut tree (Sapindus trifoli atus ) सि० यो० दाह ज्वर, श्रीकण्ठ । "फेनेनारिष्टकस्य च । (२) निस्व वृक्ष, नीम | The neomb tree ( Melia azad-dirachta ) | उक्र स्थान में नीम के कोमल पलव व्यवहार में खाने चाहिए । च० द० पित्त० ज्य० शिरोलेप 1 रीडाकरन । रीठा । निर्मली । मद० ० ५ । ( ३ ) सरल वुम, सरल, धूप सरल | (Pinus lon• gifolin ) रत्ना० - लो० ( ४ ) मच, सुरा | Wine ( Spirituous liquor. ) भ० । अरिष्टुत्रयम् arishta-trayaan-सं० की० अश्व के अरिष्ट ( अशुभ ) लचण विशेष | यह तीन हैं यथा -- (1) स्वस्थारिष्ट, ( २ ) वेधारिष्ट और ( ३ ) कीटारिष्ट । इनमें से स्वस्वारिष्ट के पाँच भेद हैं, यथा-भोजनारिष्ट, छायादि अरिष्ट दर्शनेन्द्रिय श्रादि अरिष्ट, श्रवणेन्द्रिय अरिष्ट, और रसनेन्द्रिय अरिष्ट । जय० दत्त० २३-२५ श्र० । अरि फलः arishta phalah -सं० पुं० कटुनिस्व वृक्ष । रा० मि०त्र० ६ । अरिष्टफलम् arishta phalam-सं० की ० फेनिल, सेठा | Soapnut tree ( Sapindus emarginatus. Tehl.) अरिष्टलक्षणम् arishta-lakshanam संं For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy