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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरण्यवाताद अरण्यवांता - ( Pistacia tere binthus) के समान रासायनिक संगठन-व्रीन ( Brein) त्रिकोणमय बीज होते हैं । परन्तु अरबी कोषकार ६० प्रतिशत, एमाइरीन ( राल) २५ प्रतिशत, उसे बालसम फल ( Culpobalsamun): प्रायोश्राइडीन (Bryoidin), ब्रोडीन( Breख्याल करते हैं। ऐसली कहते हैकि अपनी जावा ! idin ) तथा एलेमिक अम्ल । लयशीलताकी श्रौषधीय वनस्पतियों की सूची में हॉर्सफील्ड यह ईशर में तो बिलकुल लय हो जाता है, पर हमें बतलाते हैं कि उत निर्यास में कोपाइबी बाल- मयसार (६०%) में भी इसका बहुत सा सम ( Balsam of copaiba) के भाग लयशील होता है। समान हो गुणधर्म हैं । इसकी त्रिकोणयुक्र गिरी ! प्रयोगांश-गुडली अर्थात् बोज तथा तैल, को दिहाती लोग कच्चे ही एवं पका कर खाते । जमा हुआ प्रालियो-रेजिन जो काटने से टपकने हैं और तेल ताजी दशा में स्वाने तथा बासी होने । लगता है ( एलेमी)। पर जलाने के काम आता है । राल भी जलाने के ! औषध-निर्माण--प्रलेप(५ में ); गिरी .काम आता है। अर्थात् बीज तथा तेलका इमल्शन । मात्रा-प्राधा जावा में वीज के लिए इसके वृक्ष लगाए ! श्राउंस से १ पाउंस । जाते हैं। भारतवर्ष में ट्रावनकोर के पास यह । एलिमाई प्रलेप ( Unguentum ele. अत्यन्त सफलतापूर्वक उत्पन्न किया गया है। । ini)। मरहम रातीनजुल मन्शिम्-अ०। शेखरईस ने मन्शिम (हब्बुल मन्शिम ) के | निर्माण ---एलीमाई ! भाग, परमेसीटाई नाम में इस वृक्ष के फल का वर्णन किया है।। प्राइंटमैंट ४ भाग दोनों को परस्पर पिघला कर हलबुल मन्शिम के नाम से महानुल अद्वियह . छान ले और शीतल होने तक हिलाते जाएँ। और मुहीत आज़म में भी इसका वर्णन पाया है। प्रभाव-स्निग्धताजनक, उत्तेजक और श्लेष्मयमन तथा हजाज़ निवासी इसके तैल को निस्सारक । निर्याम उत्तेजक तथा वयंलेपन इत्रेमन्शिम कहते हैं। है। तैल स्नेहकारक है। वानस्पतिक-विवरण-राल बृहत्, शुष्क, गुणधर्म तथा उपयोग-ऐन्स्ली के मता. जारदीमायल श्वेतवर्ण के समूहों में पाया जाता नुसार इसका गोंद बालसम ाफ कोपाहबा के है । उत्ताप पहुँचाने पर यह शीघ्र मृः हो जाता : समान गुणधर्म युक्र है। शिथिल (व्यथा रहित) है और तब उसकी गंध एलेमीवत् (मन्शिम । वणों में इसे प्रलेप रूप से प्रयोग में लाते हैं। वत् ) होती है। इसकी गिरी द्वारा प्राप्त तैल वाताव-तैल की प्रतिनिधि है। ई० मे० प्लां।। फल से इंच लम्बा, अंडाकार, त्रिकोणयुक्र, सिरे की और नुकीला ( तीक्ष्णाग्र), चिकना, . डॉक्टर वैट्ज़ (Waiz) लिखते हैं कि किञ्चित् फीके बैंगनी पतले मूदादार वाह्यत्वक्युक; इसकी गिरी द्वारा निर्मित इमल्शन चाताद मिश्रण गुठली अत्यन्त कठोर, त्रिकोणीय, अस्फुटनीय : (Misturaamygdale) की उत्तम (Indehiscont), अन्य दो के पतन होने के प्रनिनिधि है तथा वह इसके कोलमृदुकारक गुण कारण एककोपीय होती है। श्रामण्ड । वाताद | के कारण इसे वाताद मिश्रण से उत्तम नयाल गिरी) का बहिरावरण मिल्लीमय होता है, जिसके । करते हैं। भीतर तीन खण्डों में विभाजित और परस्पर लिपटे । गिबर्ट (Guibourt ) एलेमी गंधयुक तथा बल खाए हुए तैलीय दौल होते हैं। न्युगीनिया रेज़िन (Ner Guinea Resin.) गिरी से ४० प्रतिशत श्रद्ध ठोस, ग्राह्य एवं मधुर- के अन्तर्गत उक्र रालका वर्णन करते हैं स्वादमय वसा प्राप्त होती है जो बहुत काल यह राल (Manilla elemi)जो उप.. पर्यन्त दुर्गन्धरहित बनी रहती है। (4ट. युक्र वृक्षसे प्राप्त होता है, प्रधानतः वार्निश बनामे For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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