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अरण्य मदनमस्त पुष्प
नेलिस
श्ररण्य मदनमस्त पुष्प aranya-madan.masta-pushpa-हिं० पु० सिकास सर्सिCycas Circinalis, Linn. Sya. C. Inermes ) । जंगली मदनमस्त का फूल | बजर बहु बस्त्र० । पहाड़ी मदनमस्त का फूल - इ० ग्राम देसामोपन-गो० । मदन कामे, मदन- कामम्पू, काम, चनंग काय - ता० | मदन मस्तु राज गुवा, मदनकामाक्षी - ते० | मालाबारी- सुपारी मह० । रिन बदम, टोपन, एन्यकाय-मलच० । मुदंग-वर० । म- गस्स सिं० ।
( NO. Cycadvaceve. )
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उत्पत्ति-स्थान -- मालाबार तट, पश्चिम मदरास की शुक पहाड़ियाँ ।
प्रयोगांश-पौधिक पत्र ( बैक्ट्स ), गुठली
तथा काण्ड |
वानस्पतिक विवरण -- बाजार में बिकने वाले पौपिकप भाला के शिर के शकल के, दो
लम्बे तथा श्राध इञ्च चौड़े और पृष्ट की ओर धूसरपीत वर्ण के कोमल सूक्ष्म रोमोंसे श्राच्छादित होते हैं । प्रत्येक छिलके के वाह्य ऊर्ध्वकोण से एक सूआकार अन्तः वक्र विन्दु निकलता है । जब कि कोण प्रथम प्रथम प्रगट होता है तो वे अङ्कुर
अनन्नास के के समान बहुत निकट निकट चापित रहते हैं, परन्तु ज्यों ज्यों उनकी अवस्था अधिक होती है त्यों त्यों वे एक दूसरे से भिन्न होते जाते हैं । इनमें कोई तन्तु नहीं होता; छिलके का अन्तस्तल पराग-कोष (ऐन्थर) द्वारा पूर्ण रूप से श्रादित होता है; पराग-कोप (ऐन्धर) एकसेलीय ट्रिकपाट शुक्र, शिखरके इर्द गिर्द खुला हुधा होता है, जिससे पराग विसर्जित हुआ करता है । मज्जा में पाए जाने वाले श्वेतसार की शु 'वीक्षण द्वारा परीक्षा करने पर यह सांगू के समान होता है । रासायनिक संगठन ( या संयोगी श्रवयव ) - पौम्पिकपत्र तथा त्वचा में अधिक परिमाण में अल्ब्युमेनीय वा लुआबदार पदार्थ, जो जल में लयशील होते हैं, शुल्क रूप में पाए जाते हैं । परन्तु इसमें कोई क्षारीय वा अन्य ऐसे सत्व नहीं
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अरण्य मक्षिका
पाए जाते जो इसके प्रसिद्ध मदकारी प्रभाव के हेतु सिद्ध हों। इससे कतीरा के समान एक निर्यास तथा एक प्रकार का सागू या प्रकांड तथा अस्थि द्वारा निर्मित घाटा जिसको मलाबार मैं "इन्दुम पोदी" कहते हैं, पाए जाते हैं ।
प्रभाव तथा उपयोग-नर पौष्पिकपत्र ( कोष ) दक्षिण भारतवर्ष में मादक रूप से उपयोग में आते हैं । इनमें उनपर रहने वाले कीटाण ु श्र को मान्वित करने का गुण है । ये उत्त अक तथा कामोद्दीपक भी हैं। इसका श्रौषधीय गुण पाटला (पाल ) प के समान ख़याल किया जाता है । इसी कारण इन दोनों श्रोषधियों को तामिल भाषा में मदन-काम- पु श्रर्थात् कामपुष्प शब्द से अभिहित करते हैं । श्ररण्य-मदन-मस्त geप के पौपिकप (लैक्ट्स) को अन्य द्रव्यों के साथ चूर्णित कर इससे कामोद्दीपक मोदक प्रस्तुत किए जाते हैं। इस वृक्षके कांड तथा गुठली द्वारा
प्रस्तुत किया जाता है । भालाबार में इस की गुठलियों को एकत्रित कर मास पर्यंत धूप में सुखाते हैं; तदनन्तर इसे ख़ल में कूटकर घाटा बनाते हैं जिसको "इंदुम पोन्दी" कहते हैं। यह ( Caryota ) के प्राटे से श्रेष्ठ, किन्तु चावल से निम्न कोटि का होता है और इसे पहाड़ी जा नियाँ तथा निर्धन लोग खाते हैं, विशेषकर जुलाई से सितम्बर मास तक जब कि चावल कम होता है और उनके नाश होने का भय रहता है । प्रायः सागू में इसका मिश्रण किया जाता है। व्हीडी (Rheede) के वर्णनानुसार फलान्वित कोया ( Cone ) की पुल्टिस कटि पर लगाने से वृक्कशोथ विषयक शूल दूर होता है | फ़ा०ई० ३ भा० । इं० मे० मे० /
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नोट -- " मदनमस्त " ( Arta botrys od. oratissinna, Z. Br. ) तथा “मदनमस्त का झाड़" नाम की दो और वनस्पतियों हैं जो पूर्व कथित वनस्पतियों से नाम सादृश्यता रखने पर भी दो सर्वथा भिन्न भिन्न श्रोषधि हैं । स० फा० ई० । इनके लिए यथास्थान देखो । श्ररण्य मक्षिका aranya-makshiká-सं० स्त्री० वन मक्षिका, डंस, मच्छर - हिं० । डश,
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