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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरण्यतम्बाकू ५७ अरण्यतुलसी कि श्वास तथा शिश्वाक्षेप ( Infantile यह यचमा की मूल्यवान औषध है तथा यह convulsions ) में इसका उपयोग किया रात्रिस्वेद को रोकती, कास को कम करती और गया है । डॉक्टर एफ० जे० बी० क्विनलैन । प्रांत्र शैथिल्य को ठीक करती है। एक पाउंस (१८८३) ने आयरलैंड में इसके पत्र को दुग्ध .. (२॥ तो०) इसके पत्र को एक पाइण्ट (१० में उबाल कर क्षयजन्य कास तथा अतिसार के .. छटांक) दुग्ध में उबाल कर दिन में दो बार मुख्य औषधीय उपयोग की ओर ध्यान दी। उपयोग करने से यह श्वासावरोध को दूर करता उन्होंने बतलाया कि बागों में उक्त पौधे की है। (वैट) विस्तृत कृषि की जातीहै । उनका दावा है कि यह मूत्रावयवस्थ क्षोभ तथा प्रदाह, प्रतिश्याय इसमें कॉडलिवर पोइल (कोड मत्स्य यकृसैल) और अतिसार में लाभदायक है। श्वास रोग समान शरीरभारवद्धक तथा रोगनिवारक गुण में इसके शुष्क पत्र को हुक्का पर पीते हैं अथवा इसका सिगरेट उपयोग में लाते हैं। इसको जड़ ज्वरघ्न रूप से दी जाती है । इसके डॉक्टरविन लैण्ड के चिकित्सालय विषयक बीज कामोरोजक हैं। इसके पत्तेको रगड़कर उसमें प्रयोगों द्वारा निम्न परिणाम स्थिर किए गए हैं:तैल सम्मिलित कर तथा उसे गर्म करके शोथ (१) यक्ष्माकी प्रारम्भिक तथा उरःक्षतीय अवस्था युक्त स्थानों पर लगाते हैं। मुट्ठी भर इसके पत्र से पूर्व प्रयोग करने से मलोन में कार लिवर को १ पाइंट (१० छुटांक ) गोदुग्ध में यहाँ तक उबालें कि श्रद्ध पाइंट (५ छटांक) दुग्ध शेष इल (काड मत्स्य यकृतैल) की अपेक्षा अधिक तथा रशन कौमिस (Russian koumiss) रहजाए । तदनन्तर इसे छानकर शर्करा सम्मिलित कर सोते समय सेवन करें। इससे कास कम के तुल्य शरीरभारवर्द्धक एवं रोगनिवारक शकि होती है तथा वेदना और क्षोभ दूर होते हैं। है। (२) उरःक्षतावस्था में यह कास को इं० मे० मे०। बहुत कम करता है। (३) यचमीयातिसार पूर्णत: प्रतिबन्धित हो जाता है । ( ४ ) इसका डॉक्टर स्ट्युवर्ट के कथनानुसार इसको अचमा के रात्रिस्वेद पर कोई सशक्र प्रभाव नहीं रेवन्दचीनी भी कहते हैं । यह इस कारण है कि होता । अस्तु उसका धन्तूरीन (ऐट्रोपीन ) से कभी रेवन्दचीनी में इसका मिः ए करते थे। सामना करना चाहिए। पी०वी०एम० । गराड-डिजिटेलिस में कभी कभी इसका तथा अन्य पौधोंका मिश्रण करते हैं । दत्त महोदय | अरण्य-तुलसी aranya-tulasi-सं० स्त्री० वर्णन करते हैं कि देशी लोग इसे श्वास तथा वनतुलसी, कृष्ण तुलसी । ( Ocimunu फुप्फुस रांगों में वर्तते हैं और यह कि इसमे' Gratissimumm ) कालायावरी-हिं० । तमालबत् (ताम्रकूट अर्थात् तम्बाकूत्रत् ) निद्रा. राणतुलस-मह० । वैजयन्ती तुलसी। यह दो जनक गुण है । बीज कामोद्दीपक ख्याल किए प्रकार की होती है:-- ( १ ) हस्य (छोटी) जाते हैं। तुलसी और (२) दीर्घ (बड़ी) तुलसी । सूरुप तथा अमरीका के संयुक्त राज्य में एक गण--जंगली तुलसी सुगंधयुक, उपरा, कटु समय स्निग्धताजनक वा नदुताकारक रूप से है तथा वान, चर्मदोप, विसर्प और विषनाशक इसके धने ऊर्गीय पत्र का केवल गृह श्रीपध में ही है। छोटी जंगली तुलसी कटु, उष्ण, तित्र, नहीं, अपितु चिकित्सकगणों में भी बहत रुचिकारक, दीपन, हृदय को हितकारक, लघु, मान्य था | प्रतिश्याय तथा अतिसार की विदा ही, पित्तकारक एवं रूत है तथा कण्डू, विष, चिकित्सा में इसका अन्तः और अर्श में वाह्य छर्दि, कुष्ट और ज्वरनाशक है एवं वात,कृमि,कफ, (प्रलेप रूप से) उपयोग किया जाता था । दद् तथा रकदोष नाशक है। बीज-दाह तथा (वैट) शोषनाशक है । 3. निव० द्र० गु० । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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