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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वरस १ भाग, गंधक माग, और दही भाग, भर ज़ (उपसर्ग) रोगाक्रमण के पश्चात् ही इन तीनों को ताम्र पात्र में अग्नि पर गरम पाया जाता है और उसके प्राधीन होता है। कर तरखुजली (Scabies) एवं (Mag. अस्तु, निम्नोष्ठ-स्फुरण वमन होने की सलामत gots ) द्वारा जनित्त क्षतों में लगाते हैं। (रूप ) कहा जाता है। किन्तु उसको सरज़ नहीं डाहमॉक । कहा जा सकता। क्योंकि वह रोग ( वमन ) से फल कटु, संकोचक और और वायुनिस्सारक पश्चात् नहीं, प्रत्युत पूर्व में पाया जाता है। (माध्मानहर) है। ई० मे० मे। अलामत और दलील का भेद देखो अला. अरङ्गरः arangarah-सं० पु० कृत्रिम विष । मत में। (Artificial Poision.) वै० निघ०। डॉक्टरी नोट-कम्प्लीकेशनका शाब्दिक अर्थ बरगदी १३angudi-सं० स्त्री० माधवी लता। परस्पर संश्लिष्ट (लिपटना) या द्विगुण होना है। (See-madhavilata.) ० निघ०। डॉक्टरी की परिभाषा में हो या थधिक व्याधियों अरच% aracharu-सिमला० मसुरी,मकोला का एक ही काल में उपस्थित हो जाना अर्थात् '-हिं० । रसेलवा, पजेरो-सिमला० । भोजिन्सी एक ही रोगके वेग पथमें अन्य रोग वा व्याधियों -पा० । (Coriaria nepalensis.) का उत्पन्न हो जाना है, जिनका स्थायित्व प्रथम मेमो०। रांग पर निर्भर होता है। दूसरे शब्दों में यह पूर्व अरचि ayuchi-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० अर्चि ] व्याधि के प्राधीन होते हैं। ज्योति । दीप्ति । श्राभा । प्रकाश | तेज। अर्वाचीन मिदेशीय चिकित्सक उक्र शरद परचो arachi-ता० काञ्चनार, कचनाल, 'प्रश्ता की रचना तथा उसके मौलिक शब्दार्थ को दृष्टि -हि. । ( Bauhinia rariegata.) में रखकर मुज़ाफ़ संज्ञा को उसके पर्याय मेमो० । रूप से प्रयोग में लाते हैं। परन्तु तिब की परिमरचु aracbu-गढ़वाल हिन्दी रेवतचीनी । भाषा में उसका वास्तविक प्राचीन सत्य भाव मेमो०। पर ज़ शब्द से प्रकट हो जाता है। प्रस्तु, इसे ही यहाँ ग्रहण किया गया है। रजaaraz-अ० तिय की परिमुजाश्रफ muzaaafah | भाषा में उस सिम्पटम का शाब्दिक अर्थ परस्पर घटित होना अस्वाभाविक दशा या व्याधि का नाम है जो है। किन्तु डॉक्टरी परिभाषा में उस परिवर्तन को अस्य रोगों के कारण अर्थात् उसके श्राधीन होकर कहते हैं, जा रोगकाल में उपस्थित होता है और उत्पन्न होती है। उदाहरणतः वह शिरःशूल जो जिससे उक्त व्याधि की उपस्थिति का पता लगता किसी उवर के प्राधीन होकर जनित होता है है। अस्तु, इस विचार से सिम्प्टम शलामत कार.ज़ ( उपसर्ग, उपदव ) कहलाता है । (रूप वा लक्षण ) का पर्याय है। परन्तु भाकम्भिकेशन ( Complication.), सिम्पटम् चीन मित्रदेशीय तबीब अलामत की बजाय (Symptom.)-इं। घर ज को इसका पर्याय मानते हैं। - अलामत और अरज का भेद- | अरज araja-हिं० संक्षा पु' गैड़ाइ । इन दोनों में मुख्य और गौण का अन्तर है | अरज aara.ja-अ. पंगु या लुग, लंगड़ा होना, अर्थात् घरज अजामत की अपेक्षा मुख्य वा | पंगुत्व, लंगड़ापन । लेमनेस (Lameneमान है। क्योंकि अनामत (लक्षण) स्वास्थ्य ss.)-ई । तथा रोग प्रत्येक दशा के लिए प्रयोग में प्राता | अरजल aajala-हि. संशा पु. [१०] है और फिर कभी यह स्वास्थ्य एवं सेग से पूर्व (१) वह घोड़ा जिसके दोनों पिछले पैर और और कभी पश्चात होता है। इसके विपरीत अगला दाहिना पैर सफेद वा एक रंग के हो । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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