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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्राज मादिग्र्यह, अनाज मुफरिदह श्रमांज मादिय्यह.amaz.imadiyyah-अ० द्वारा लगभग ६० रोग मुतऋष्टी (छूतदार ) वै रोग जो दोषाधिक्य अथवा उनके विकृत होने सिन्द हुए हैं । इन सबके लिए देखो-संक्रामक । के कारण उत्पन्न हो । अम्राज मुतगय्यरह amriz-imutaghayyaअनाज माविय्यहurav-mabiyyah-० rah- अ० वे रोग जो क्रमानुसार उत्पन्न हो वाई मज, महामारी | तथा धीरे धीरे बदलें। सम्राज़ मिकदार amriz-mighā1-० वह अनाज मुतवस्रुितह,imar-mutavas. रोग जिसमें विकारी अवयव के श्रायतनमें अन्तर sitah-० वे रोग जो हादह तथा मुजिमनह, श्रा जाए अर्थात् वह स्थूल या क्षीण हो जाए। । के मध्य हों और जिनकी अवधि २० से ४० रोज अनाज़ मिज़ाजिय्यह amaz-miz.ijiyyah | के भीतर हो। -अ० प्रकृति विकार जन्य रोग। अनाज मुसासह amrar-mukhtasan अनाज मुतवारिस.ह. amraz•mutivari. -म. वे रोग जो विशेष अवयवों से सम्बन्ध Sah- अ. पैतृक ग्याधियाँ, वे रोग जो पिता रखते हों। माता से सन्तति में हो, मौरूसी बीमारियाँ । समाज मुजिमनह amriz-muzaninah-० इन्हेरिटेड डिजीज़ेज़ (Inherited Dise ases )--इं०। जीर्ण या पुरासन (खिरकारी) रोग। पुरानी बीमारियों, मुभिमन बीमारियाँ । ऐसी व्याधियाँ जो ४० दिन नोट-कोई कोई इतिब्या (यूनानी चिकिअथवा इससे अधिक कालकी होगईहो । समय की स्सक ) इनकी संख्या ८ लिखते हैं । वे निम्न हैं, कोई सीमा नहीं, चाहे रोग सम्पूर्ण श्रायु भर रहे। यथा-(१) जज मि (कुष्ठ, कोद ), (२) क्रॉनिक डिज़ीज़ेज़ ( Chronic Diseases) बरस ( श्वित्र, श्वेत दाग़ ), (३)दिक ( जीर्ण ज्जर ), (४) सिल ( यक्ष्मा ), (५) माली अनाज़ मुतअद्दियह amtiz-mutaand. वीलिया (lelancholin), (६) diyah oअम्राज मुस्त्रिययह अनाज सारिय्यह। सुलह (गज, इन्द्रलुप्त), (.) निरिस छुतदार रोग, संक्रामक व्याधि, मुतअट्टी बीमारियाँ, (छोटी संधियों की वेदना), योर (5) मानिया वे रोग जी रोगीसे स्वस्थ व्यक्रिको लग जाएँ। इन्फे. (उन्माद भेद) | किन्तु किसी किसी हकीम ने इनकी क्शस डिजीजेज (Infectious Diseases), संख्या १७ पर्यन्त लिखी है अर्थात् पाठ उपरोक कारटेजिअस डिजीज़ज़ ( Contagions एवं ( ६ ) सर (अपस्मार), (१०) उन्नह , diseases)-इ०। (११) अरब (तर खुजली), (१२) जुदरी (शीतला, नोट- प्राचीन इतिब्बा ( यनानी चिकित्सक) चेचक), (१३) बस ( मुख दुर्गन्धि ), (१४) छः से लेकर दस रोग तक को मुल अही अर्थात् रमद ( नेत्र पाना या दुखना, नेवामिष्यन्द) छतदार ( संक्रामक ) जानते रहेहैं। उनका उल्लंग्य (१५) कुरूह, मुतअफ्रिकनह. (जिन्नता युक निम्न पक्रियों में किया गया है, यथा व्रण ), (१६ ) हस्त्रह, ( खसरा ) (१)जजाम ( कुष्ठ, कोढ़), (२) जर्व : और (१७) बा ( महामारी)। इनकं अति(तर कगडु या खुजली), (३) जुद्री (चेचक, रिक शेख ने वृक एवं वस्तिस्थ अश्मरियों को शीसला ), (४) ह.स्त्रह, (खसरा ), (५) भी पैतिक रोगों में समावेशित की है। अाधुनिक सिल व कुरूह अफिनह ( यक्ष्मा व सडौंधयुक्र चिकित्सक उपदंश व सूजाक को भी पैतृक रोगों अणे ) और (६) हुम्मा वबाइयह ( वयाई । की सूची में अंकित करते हैं। बुखार, महामारी का ज्वर ) जो सामान्य रूप से अम्राज़फरिदह, amraz-mufridah-अ. प्रसार पाते हैं एवं जिनमें प्लेग (ताऊन ) भी माधारण रोग, मिश्रित व्याधियाँ । ये रोग सम्मिलित है । किन्तु अर्वाचीन शोधों, गवेषणों जो कतिपय रोगों के योग द्वारा न उत्पन हो, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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