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अमृत हरीतकी
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अमृतास्य नेल तत्पर्याय-वृक्षरहा, उपवालिका, घनवल्ली, सित
दृl,दूब । (१३) पिलो ।मे01 (1) लिंगिनी । लता । गुण-किजित तिक, रसायन, विषघ्न, व्रण,
ग०नि०व०३।(१५) नीलदुर्वा, हरीदून। कुछ, प्राम, कामला, और शोधनाशक है। रा०।
रा०नि०व० । (१६) श्वेत दूर्वा, सुफ़ेद नि० य०३।
दुब । (१७) नागवल्ली, पान । (१८) रास्ना (२) प्रायमाणा । रा०नि० ब०५ । मात्रा- (१६) गरुडवली । धै० निघ० सय चि० । ३ मा० ।
(२०) सूर्यप्रभा। (२१) स्व● जालता । अमत हरीतको amriti-haritaki-सं०
(२२) कन्दगुड्ची, कन्द गिलोय । (२३) स्त्री० धनियाँ, जीरा, मोथा, पञ्चलवण, अजवायन, ! स्फटिकारिका । (Alumon ) मद० हिंगु, तेजपत्र, लवंग, त्रिकुरा प्रत्येक समभाग १०४ । प्रयोगा । गिलोय । (चित्रक गुहे) ले उत्तम चूर्ण करें। इस चूर्ण के बराबर शुद्ध ! वा. सू. १५ श्रारग्वधादिः । “निम्बामृता हड़का चूर्ण मिलाएँ । हड़ शोधन विधि-१०० मधुरसा श्रुव वृक्षपाटा:" पद्म कादौ अरुण ग्य. हडॉको लेकर तक भिगाएँ । जब हड़ मुलायम हो मृता दश जीवन संसाः। चि०१० किरातादिः। जाएँ तर उनके बीज अलग अलग कर छिलको किराततिक्रममृता । च.द. वात ज्वर चिक। को लेकर चूर्ण करले । यही चूण उक्र योग में किराताब्दामृतोदीच्य-| च. द० दिस ज्वर. मिलाया जाता है। पुनः इसमें पडषणा.पंचलवण,
चिलोधादिः। च० सू०४०। भूनी हींग, जवाखार, जीरा, अजमोद ले चण (२४ ) मालकांगनी । (२५) अतीस । कर चुक्र की भावना दें और उक्र समस्त चूर्ण में अमृताख्यगुग्गुलु: amritakhya-gugguluh मिला रक्खें । उचिप्त मात्रा में सेवन करने से
तरक्ररोग में प्रयुक्त योग यथा-गरुन घोर अजीण का नाश होता है।
२ श०, गुग्गुलु १ श०, त्रिफला प्रत्येक १ श० जन
६४ श० में कूट कर पकाएँ, जब चौथाई शेष रहे अमूननारः amrita-kshāraha-सं० पु.
छानकर पुनः इतना पकाएँ कि गादा होजाए । इसमें नवसादर,नू(नर)सार ।(Ammonium chlor
दन्तीमूल ४ तो०, निशोथ २ तो. चूर्णकर ridum.) वै० निध।
मिलाएँ। इसका बलाबल विचार कर माना। अमृता amriti -सं० स्त्री०, हिं० संज्ञा स्त्री० चक्र० द. घाटगे०चि०।
(१) गुड़चो, गिलोय । ( Tinospora अमृताख्य घृतम् Amritākhya-ghritam corditolit ) रा. नि. व० ३ १ २ मा०।।
--सं० को अपामार्ग बीज और शिरस के बीज (*) (Phyllanthus cmblicat. ) दोनों प्रकार की श्वेता (कटमी और महाकर श्रामला ।गचि० ११ । (३) हड़ हरीतकी ।। भी) और काकमाची ( मकोय ) इन्हें गोमूत्र (Terminalia chebula ) Togo में की। इनसे सिद्ध किया हुआ धृत विष का "स्थूलमांसामृता स्मृता।" इयं चम्पा जाता । 70 परम शमन करता कहा गया है। यह अमृत नामक नि.व. २।(४) तुलसी (Ocimum
विख्यात घृत है। सुश्रुत० सं० कल्प० अ०७ Sanction.)। (५) काऽधात्री स । भा०। लो०११ (६) मदिरा, मथ (Wine)। रा०नि० व. अमृताख्य तेलम् amritakhyat-tailan-सं० १४। () इन्द्रायण (Citrul]us colocyn. की०गिलोय, मुलहठी, लघुपञ्चमूख, पुनर्नवा, thes ) रा. नि० व० ३। (८) राम्ना, पुरएटमूल, जीवनीयगण, प्रत्येक १.० पारावतपदी, लताफरकी । रा०नि० व०३ पन्न । वजा ५०० पल, बेर, बेल, जौ, कुल्थी, (१) गोरखदुग्धा। (१०) काली अनीस, प्रत्येक एक एक प्रादक, शुष्क गाम्भारी फल कृष्ग्य अतिविषा । (११)रक निशोथ,खुद स १द्रोण, इनको कूट धोकर १००द्रोण जन में रक्त त्रिवृत्ता । रा०नि० २०६। (१२) दूर्वा, पकाएँ । जब द्रोण जल शेष रहे सब छान लें
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