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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमरुत एरंजाम पराजु, ए गोरया-पण्डु, जाम् कोइा -ते। चेम्-पेर-चेम्-पेरक्क, चोवन-मलाक-केपर, पालम-पर-मल० । केम्पु-शिव-इराण-कना० । ताम्मड-जाम्ब, ताम्बड-तूप-केल-मह. | लाल पियार, लालपेरु, लाल जाम्रूद गु० । रत पेर, रत पेरगाडि-सिं० । मालकी-नी, मलका बेन -बर० । मोधरियान-श्रासा० । ताम्बड-पेरु -बम्ब०। ( २ ) श्वेत अमरूद, सफेद अमरूत, सीडियम् पायरिफेरम् Psidium Pyriterum, Linn. ( Frnit of- White Guava)-ले। सुफ़ेद सफरी अाम सुफ़ेद जाम्-द० । धोप- गोऋ श्राछि फल, सादा पियारा -बं० । अम्रूदे अबैज-अ० । अमरूदे सुपेद -फा० । वे एलइ गोय्या-पजम-ता० । तेल्ल जाम--पण्डु, तेल-गोय्या-पण्डु-ते। वेड्-पेरा धेड-पेरक्क, वेल्ल मलाक्-कप्पेर -मल० । विलि-शिबे-हराणु-कना० । पाढर-जाम्ब. पांढर तूप-केल-मह. । उजलापियार, उज्लो पेरु, सफेद जमरूद-गु. सुदुपेर, सुदुपेर-गदि-सिं० । मालका-फिऊ-बर० । पाएर-को० । श्रामुक पा० । पाण्ढर-पेरु-बम्ब० । ___ जम्बू वर्ग (..O. Myntatebe. ) उत्पसि स्थान-अमेरिका, यह लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष साधारणतः वंग प्रदेश में खगाया जाता है। वानस्पतिक वर्णन-एक पेड़ जिसका धड़ कमज़ोर, टहनियाँ पतली और पत्तिया पाँच या ; छः अंगुल लम्बी होती हैं। इसका फल कच्चे पर कषैला और पकने पर मीठा होता है और उसके भीतर छोटे छोटे बीज होते हैं। इसके ताजे घड़ की छाल का बाह्य पृष्ट चि. ! कना और भूरे रंगका होता है, और उसपर पर के , समान सूखी हुई छाल के चिह्न होते हैं। कभी । कभी वे कुछ कुछ लगे होते हैं । धूसर उपचर्म के नीचे ताजी छाल हरित वर्ण की होती है, इसके भीती पृष्ठ पर लम्बाई की रुख उभरी हुई रेखाएँ। पड़ी होती हैं तथा यह हलके धूसर वर्ण का होता है । स्वाद-कसैला और ग्राह्य अम्ल होता है। पत्र-सुगंधि युक्र अण्डाकार या प्रायताकार, लघु उंडलयुक्त नीचे की ओर कोमल रोमों से श्रावृत और मुख्य पत्र शिराएं अस्पन्त स्पष्ट होती है। रासायनिक संगठन--छाल में कपायीन (टैनीन) २८४ प्रतिशत राल और कैल्सियम ऑरजेलेट के रखे होते हैं। अधिक परिमाण में कार्बोहाइड्रेट्स ( काबोंज ) और लवण होते है । पत्र-में राल, वसा काष्टोज (cellulose) कपायीन ( टैनीन ) उदनशील नैल, हरिन्मूरि (Chlorophyll) और खनिज लवण श्रादि होते हैं । बसा लोरोफार्म में पूर्णरूप गे और ईथर या ऐलकोहल में अंशतः विलेय होता है। किंचित् हरित उड़नशील तैल में युजिनोल (Eugenol) नामक पदार्थ होता है। यह तैल क्लोरोफार्म ईथर या ऐलकोहल में धिलेय होता है। इस पेड़ में स्फुरिक (Phospuoric) चुक (Oxalic) और सेब (Malic) अम्लों (Aciils ) के साथ मिले हुए कैल्सियम तथा मैंगानीज वर्तमान होते हैं। मूल, कांड त्वक तथा पत्र में अधिक परिणाम में टैनिक एसिड (कपायिनाम्ल होता है। प्रयोगांश-स्वक् (मूल तथा कांड ) फल और पत्र व भस्म । इतिहास---वि0 डिमक महोदय के मतानुसार दोनों प्रकार के अमरूत अमेरिका से लाए गए । सम्भवतः पुर्तगाल निवासी इसको यहाँ लाए । पर भारतवर्ष में कई स्थानों पर यह जं. गली होता है। प्रभाव-कांड, त्वचा और मूलत्वक संकोचक हैं। अपक्क फल न पचने योग्य होते और वमन तथा ज्वरोत्पादक होते हैं। गुणधर्म तथा उपयोग गुण-कपैता, मधुर, खट्टा है और पका श्रमस्व स्वादिष्ट होता है । यह वीर्यदायक, बात, पि. तन्न, शीतल कफ का स्थान है तथा भ्रम दाह, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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