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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्रकम् ४५३ अम्रम् घोट टिकिया बनाएं और गजपुट विधि से फू के तो एक बार में ही भस्म निश्चन्द्र होगी। -धान्याभ्रक में हरिताल, आँवले का रस और सुहागा मिलाकर घोटे पीछे टिकिया बना कर अग्नि दें। इस प्रकार ६० अग्नि देने से सिंदूर के समान लाल भस्म हो प्रस्तुत होगी । यह भस्म चयादि सकल रोगों का नाश करती ३--इसी तरह नागरमोथे के कथ में छोटेछोटे टुकड़े कर अग्नि देते रहने से दस पुट में अभ्रक । की भस्म बन जाती है। ४-इसी तरह अभ्रक को चौलाई पंचांग के रस में घोट घोट कर दस बार अग्नि देने से उत्तम भस्म बन जाती है । प्रतिवार वनस्पति रस छोड़ कर अभ्रक खूब घोटना चाहिए . जितना अधिक घुटेगा उतना ही शीघ्र चन्द्रिका रहित अभ्रक हो जायगा। ५---मिट्टी रेता रहित अभक के सूक्ष्म सूक्ष्म | कण लेकर उनको अर्क दुग्ध में घोटकर रुपये रुपये बराबर टिकियाँ बनाएँ और धूप में सुखाकर अर्क पत्र में लपेट, सम्पुट में रखकर खूब । अच्छी गजपुट की अग्नि दे' । स्वांग शीतल होने ! पर निकाल पुनः उक अर्क दुग्ध में अच्छी तरह । घोटकर अग्नि दें। सात पुट इसी प्रकार अर्क दुग्ध की और तीन पुट बट-ॐटा क्याथ की दें। प्रत्येक बार में अग्नि की मात्रा कानी होनी चाहिए । इस पुट में चंद्रिका रहित उत्तम लाल बयां की भस्म बन जाती है। यह भस्म अच्छी बनती है और काफ़ी गुण करती है। ६.-अभक को पानके रस में घोटकर टिकिया बनाकर तीन भावना अग्नि :सहित दें। फिर तीन भावना हुन हुल के रस की दें, फिर तीन वट-जटा क्वाथ की, फिर तीन मूसली । के काढ़े की, फिर तीन गोखरू के काढ़े की, फिर तीन कौंच के काढ़े की, फिर तीन सेमल की मूसली की, फिर तीन तालमखाने के काढ़े की, फिर तीन लोध पठानी की, इसके पश्चात एक भावना गोदुग्ध की, एक दधि की और एक घृत की, एक शहद की, एक खांड की देकर पीसकर रखें। यह ऊपर का उत्तम पौष्टिक अभूक तैयार होता है। ___-वट दुग्ध, स्नुही दुग्ध, अर्क दुग्ध, नागर मोथा, मनुष्य मूत्र, वटांकुर, बकरे का रन, इन सब वस्तुओं की भस्म से १५-१५ भाबना दें तो उसम अरुण वर्ण की भस्म बनती है। ८-धान्याभूक में प्राधा भाग गंधक एवं श्राधा भाग सजी का देकर कुकरौंधे के रस में १० - सहस्र पुटी अभ्रक क्रिया सर्व प्रथम वज्राभ्रक खरल में डालकर कूटें । पीछे उसको अग्नि में तगाकर गोदुग्ध में बुझाएँ लोह पात्रमें घृत डाल उसमें इस अभक को डाल मन्दाग्नि से पचाएँ, तदनन्तर धान से श्राधा अभक ले दोनों को कम्बल या ग.हा या गजी की थैली में रख भिगोदें। फिर एक बड़े पात्र (कठौती, परात अादि ) में उस अभूक को डाल थैली को खूब मसले, दो पहर बाद जव सम्पूर्ण अभूक निकल कर पानी में प्र.जाय तब पानी को नितार अभूक को निकाल लें। इस प्रकार करने से अभूक की शुद्धि एवं धान्याभूक होता सहस्र पुट देने के लिए ६० वनस्पतियों का उल्लेख है जिनमें से प्रत्येक की १७-१७ भावना देने पर सहस्र पुटी भस्म तैयार होती है। प्रोष. धियाँ निम्न हैं प्राक दुग्ध; वट दुग्ध, थूहर का दूध, घीकुवार का रस, अण्डी की जड़ का रस, कुटकी, मोथा, जिलोय, भाँग, गोखरू, कटेरी: शालपर्णी. पृश्निपणी, सफेद सरसॉ. खरमंजरी. वडकी जटा. बकरेका रुधिर, बेल, अरणी, चित्रक, तेंदू, हरड़, पाढल की जड़,, गोमूत्र, प्रामला, बहेडा, जलकुम्भी, तालीसपत्र, मुसली. अडसा. असगन्ध. अगस्तिया का रस, भांगरा, केले का रस, सप्तपर्ण, धतूरा, लोध, देवदारु, तुलसी, दोनों दूब, ( श्वेत बा हरित दूर्वा ) कसौदी, मरिच, अनार, दाना का रस, काकमाची (मकोय), शंखपुष्पी, बालछड, पान का रस, सोठ, मण्डकपणी, ( ब्राह्मी), इन्द्रायण, भारंगी, देवदाली, कैथ, शिवलिंगी, कटुवनी, ढाक का रस, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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